Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड - ४८०
सत्त्वस्थान है । २८ प्रकृतियोंमेंसे सम्यक्त्वमोहनीयकी उद्वेलना होने से २७ प्रकृतिरूप सम्यग्मिथ्यात्वप्रकृतिकी उद्वेलना होनेसे २६ प्रकृतिरूप सत्त्वस्थान है। यह सत्त्वस्थान अनादिमिध्यादृष्टिको भी होता है । २८ प्रकृतियोंमें से अनन्तानुबंधीचतुष्कका विसंयोजन होनेपर २४ प्रकृतिरूप सत्त्वस्थान है इनमें मिथ्यात्वका क्षय होने पर २३ प्रकृतिका, सम्यग्मिथ्यात्वका क्षय हो जानेसे २२ प्रकृतिका, सम्यक्त्वप्रकृतिका क्षय होने पर २१ प्रकृतिका अप्रत्याख्यान - प्रत्याख्यानरूप आठ मध्यमकषायका क्षय होनेपर १३ प्रकृतिका, स्त्रीवेद व नपुंसकवेदमें से एकका क्षय होनेपर १२ प्रकृतिका, स्त्रीवेद व नपुंसक वेदमें से अवशिष्ट एक वेदका क्षय होनेसे ११ प्रकृतिका तथा हास्यादि ६ नोकषायका क्षय होनेपर ५ प्रकृतिका, पुरुषवेदका क्षय होनेपर ४ प्रकृतिका, सञ्ज्वलनक्रोधका क्षय होनेपर ३ प्रकृतिका, सज्ज्चलनमानका क्षय होनेपर २ प्रकृतिका, संज्वलनमायाका क्षय होनेपर बादरलोभका सत्त्व तथा बादरलोभके क्षयसे सूक्ष्मलोभका सत्व रहता है। बादर व सूक्ष्मलोभ एकलोभप्रकृतिके ही भेद हैं अतः इनके पृथक्-पृथक् स्थान नहीं गिने इसीकारण १५ ही सत्त्वस्थान जानना |
अथानन्तर इन १५ स्थानोंका गुणस्थानोंकी अपेक्षा ३ गाथाओंमें कथन करते हैं
तिणेगे एगेगं, दो मिस्से चदुसु पण यिट्टीए । तिणि य थूलेयारं, सुहुमे चत्तारि तिग्णि उवसंते ॥ ५०९ ॥
पढमतियं च य पढमं, पढमं चउवीसयं च मिस्सम्हि । पढमं चउवीसचऊ, अविरददेसे पमत्तिदरे ।।५१० ॥
अडचउरेक्काबीसं, उवसमसेदिम्हि खवगसेढिम्हि । एक्काबसं सत्ता, अट्ठकसायाणियहित्ति ॥५११ ॥ कुलयं ।।
अर्थ - मिथ्यात्वगुणस्थानमें २८-२७-२६ प्रकृतिरूप तीन, सासादनगुणस्थानमें २८ प्रकृतिक
एक, मिश्रगुणस्थानमें २८-२४ प्रकृतिक दो, असंयत- देशसंयत- प्रमत्त व अप्रमत्तगुणस्थान में २८-२४२३ - २२ व २१ प्रकृतिरूप पाँच-पाँच, अपूर्वकरणगुणस्थानमें २८ - २४ व २१ प्रकृतिरूप तीन, अनिवृत्तिकरणगुणस्थानमें २८-२४-२१-१३-१२-११-५-४-३-२ व १ प्रकृतिरूप ग्यारह, सूक्ष्मसांपरायगुणस्थानमें २८ - २४-२१ व १ प्रकृतिरूप चार तथा उपशान्तकषायगुणस्थानमें २८ - २४ ब २१ प्रकृतिरूप तीन सत्त्वस्थान हैं।
१. प्रा.पं.सं. पू. ४८२ गाथा ३८३ ।