Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-४८६
उदयस्थान
सत्वस्थान
मित्र
प्रमत्त
गुणस्थान बन्धस्थान मिथ्यात्व २२ प्रकृतिक| १ | १३-५-८ व ७ प्रकृति. ४२८-२७ व २७ प्रकृतिक सासादन |२१ प्रकृतिक | ५ | ९-८ व ७ प्रकृतिक | ३ |२८ प्रकृतिक
१७ प्रकृतिक, १ , ९-८ व ७ प्रकृतिक | ३ |२८ व २४ प्रकृतिक असंवत्त | १७ प्रकृतिक| १ | ९-८-७ व ६ प्रकृतिक ] ४२८-२४-२३-२२
व २५ प्रकृतिक देशसंयत ५३ प्रकृतिक ७-६२ऋषिक ५-१३-१५..
व २१ प्रकृतिक ९ प्रकृतिक ७-६-५ व ४ प्रकृतिक | ४ |२८-२४-२३-२२
व २१ प्रकृतिक अप्रमत्त ९ प्रकृतिक | १ | ७-६-५ व ४ प्रकृतिक | ४ |२८-२४-२३-२२
व २१ प्रकृतिक
उपशमश्रेणी क्षपकश्रेणी अपूर्वकरण |९ प्रकृतिक | १ | ६-५ व ४ प्रकृतिक | 3 |२८-२४ व २१ २१ प्रकृतिक
वर ।
उपशमश्रेणी क्षपक श्रेणी अनिवृतिकरण ५ प्रकृतिक | १ | ५ व ४ प्रकृतिक २ |२८-२४ व २१ /२१ १३ १२ ११व५ ३व, अनिवृत्तिकरण ४ प्रकृतिक | ५३४ प्रकृतिक |२८-२४ व २१ /१३ १२ ११ ५३४ ३व१ अनिवृत्तिकरण ३ प्रकृतिक ३ प्रकृतिक
(२८-२४ व २१/३ प्रकृतिक अनिवृत्तिकरण २ प्रकृतिक २ प्रकृतिक
२८-२४ व २१ २ प्रकृतिक अनिवृत्तिकरण ५ प्रकृतिक | १ | १ प्रकृतिक
२८-२४ व २१/१ प्रकृतिक सूक्ष्मसाम्पराब |
१ प्रकतिक
|२८-२४ व २१ १ प्रकृतिक उपशान्तकषाय 0 ० ० प्रकृतिक
२८-२४ व २१० प्रकृतिक क्षीणकषाय ] • प्रकृतिक
1. प्रकृतिक दसणवपण्णरसाई बंधोदयसत्तपयडिठाणाणि ।'
भणिदाणि मोहणिजे, एतो णामं परं वोच्छं ।।५१८॥ अर्थ- इसप्रकार मोहनीयकर्मके १० बन्धस्थान, ९ उदयस्थान और १५ सत्त्वस्थानोंका कथन किया। आगे नामकर्मके बन्ध-उदय और सत्त्वस्थान कहेंगे।
५. प्रा.पं.सं. पृ. ३३५ गा. ५१ ।
|१
३१
३व१