Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड - ४९५
तत्थतणऽविरदसम्मो, मिस्सो मणुवदुगमुच्चयं णियमा । बंधदि गुणपडिवण्णा, मरंति मिच्छेव तत्थ भवा ॥ ५३९ ॥
अर्थ- सप्तमपृथ्वी में असंयतसम्यग्दृष्टि और मिश्रगुणस्थानवतजीव अपने-अपने गुणस्थानों में मनुष्यगति- मनुष्यगत्यानुपूर्वी और उच्चगोत्रका नियमसे बंध करता है। सासादन मिश्र व असंयतगुणस्थानवर्ती सप्तमपृथ्वीके नारकी जीव जिससमय मरण करते हैं उससे अन्तर्मुहूर्तपूर्व मिथ्यात्वको प्राप्त करते ही हैं।
तेउदुगं तेरिच्छे, सेसेगअपुण्णविलयगा य तहा । तित्थुणणरेवि तहाऽसण्णी घम्मे य देवदुगे ॥ ५४० ॥
अर्थ- तिर्यञ्चगतिमें बादर अथवा सूक्ष्मपर्याप्त अपर्याप्ततेजकाय वायुकायजीव भोगभूमिजत्तिर्यञ्च बिना तिर्यञ्चगतिमें नियमसे उत्पन्न होते हैं। अवशेष बादरसूक्ष्मपर्याप्त व अपर्याप्तपृथ्वीजलकायिक तथा नित्यानगाद-चतुर्गीतिनिगोदपर्याप्त-अपयप्ति एवं प्रतिष्ठित - अप्रतिष्ठितप्रत्यैकवनस्पति, द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय- चतुरिन्द्रियपर्याप्त अपर्याप्त जीव मरणकर तिर्यज्चोंमें तथा त्रेसठशलाका पुरुषोंके बिना मनुष्यों में भी उत्पन्न होते हैं । इतना यहाँ विशेष है कि नित्य इतरनिगोदके सूक्ष्मजीव यदि मरणकर मनुष्य हों तो सम्यक्त्व और देशसंयमको धारण कर सकते हैं, किन्तु सकलसंयम ग्रहण नहीं कर सकते हैं। और असंज्ञीपञ्चेन्द्रियतिर्यञ्च प्रथमनरक एवं भवनवासी - व्यंतरदेवोंमें उत्पन्न होते हैं अन्य देव तथा नारकियोंमें उत्पन्न नहीं होते, क्योंकि असंज्ञीपञ्चेन्द्रियजीवकी उत्कृष्ट आयुबन्धकी स्थिति पल्यके असंख्यातवेंभाग प्रमाण ही है । बादरनित्य व इतरनिगोदके जीव मरणकरके मनुष्यों में भी उत्पन्न होकर उसी भवसे मोक्ष जा सकते हैं जैसे भरतचक्रवर्तीके पुत्र वर्द्धनकुमारादि ।
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सणीवितहा सेसे, णिरये भोगेवि अच्युतेवि ।
मणुवा जति चउग्गदि परियंतं सिद्धिठाणं च ॥५४१ ॥
अर्थ- संज्ञी तिर्यञ्च भी सभी नारकियोंमें, सर्वभोगभूमिजोंमें, एवं सोलहवेंस्वर्गपर्यन्त सर्वदेवों में जन्म लेते हैं। कर्मभूमिज पर्याप्तमनुष्य पूर्वोक्त सभी पर्यायोंमें और कल्पातीत अहमिन्द्रों में उत्पन्न होते हैं। एवं सिद्धस्थानको भी प्राप्त करते हैं। अपर्याप्तमनुष्य कर्मभूमिजतिर्यञ्चोंमें और तीर्थङ्करादिबिना सामान्यमनुष्यों में उत्पन्न होते हैं। तीस भोगभूमियोंके तिर्यञ्च व मनुष्य तथा असंख्यातद्वीप व समुद्रसम्बन्धी जघन्यभोगभूमिजतिर्यञ्चसम्यग्दृष्टि तो सौधर्म - ईशानस्वर्ग में उत्पन्न होते हैं और मिथ्यादृष्टिसासादनगुणस्थानवर्ती एवं कुभोगभूमिजमनुष्य भवनत्रिकदेवोंमें जन्म लेते हैं।
१. धवल पु. १० पृ. २७६ ।