Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड - ४८५
बन्धस्थानमें २८-२४-२३-२२ और २१ प्रकृतिक पाँच-पाँच सत्त्वस्थान, ५ प्रकृतिक बन्धस्थान में २८-२४-२१-१३-१२ और ११ प्रकृतिके छह सत्त्वस्थान, ४ प्रकृतिक बन्धस्थानमें २८ - २४-२११३-१२-११ और ४ प्रकृतिरूप सात सत्त्वस्थान हैं। शेष ३ २ और एक प्रकृतिक बन्धस्थानमें २८२४-२१ तथा क्रमशः ३ २ १ प्रकृतिरूप एक - एक इसप्रकार चार-चार सत्त्वस्थान हैं। इन सत्त्वस्थानों में उच्छिष्टावली और नवकसमयप्रबद्धकी विवक्षा नहीं है, किन्तु गाथा ४८४ के अनुसार जिनके मतमें सवेद भाग के द्विचरमसमय में पुरुषवेद की बन्धन्युच्छित्ति हो जाती है उनके मतमें प्रकृतिक बन्धमें पाँच प्रकृतिक सत्त्व भी है..क आवारी ही एक
विशेषार्थ - ये गाथाएँ देशामर्षक हैं। यद्यपि इन गाथाओंसे मोहनीयकर्मके बन्धस्थानों में सत्त्वस्थानोंका कथन किया गया है तथापि इस कथनसे बन्धस्थानोंमें उदयस्थानों की भी सूचना मिलती है। मोहनीयकर्म के बन्धस्थानों में उदय स्थान इस प्रकार हैं
बावीसादिसु पंचसु दसादि-उदया हवंति पंचेव ।
सेसे दु दोण्णि एवं एगेगमदो परं णेयं ॥ ३७ ॥ प्रा. पं.सं.पू. ३२२ ॥
अर्थ- मोहनीयकर्मके २२ प्रकृतिक बन्धस्थानमें १०-९-८ व ७ प्रकृतिक चार उदयस्थान होते हैं । २१ प्रकृतिक बन्धस्थानमें ९ ८ व ७ प्रकृतिक ये तीन उदयस्थान होते हैं। इसीप्रकार १७ प्रकृतिक बन्धस्थान में ९-८-७ व ६ प्रकृतिक चार उदयस्थान, १३ प्रकृतिक बन्धस्थान में ८-७-६ व ५ प्रकृतिक चार उदयस्थान, ९ प्रकृतिक बंधस्थान में ७ ६-५ व ४ प्रकृतिक चार उदयस्थान होते हैं। पांच प्रकृतिक बन्धस्थानमें पांच व चार प्रकृतिक दो उदयस्थान, चारप्रकृतिक बन्धस्थानमें भी ५ व ४ प्रकृतिक दो उदयस्थान होते हैं । ३-२ व १ प्रकृतिक बन्धस्थानों में क्रमशः ३-२ व १ प्रकृतिक एकएक उदयस्थान होता है।
बन्धस्थानोंमें उदय व सत्त्वस्थान सम्बन्धी सन्दृष्टि इसप्रकार हैं