Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड - ४४६
विशेषार्थ ? - उपशमश्रेणी में उतरने वाला अनिवृत्तिकरण गुणस्थान में एक सचलनलोभ को बाँधता था, किन्तु वहाँ से और नीचे उतरकर लोभ और मायाप्रकृति को बाँधने लगा अथवा बद्धायुष्क वहाँ मरण करके देव असंयत होकर १७ प्रकृतियों का बन्ध करता है इस प्रकार एक प्रकृति रूप स्थान दो भुजकार बन्ध हुए । माया - लोभप्रकृति को बाँधते हुए नीचे उतरकर मानसहित तीन प्रकृतियों को बाँधता है अथवा मरणकर देव असंयत होकर १७ प्रकृति को बाँधता है। इस प्रकार दो प्रकृति रूप स्थान
भी दो भुजकरबन्ध जानना । लोभ मान और मायाप्रकृति को बाँधते हुए नीचे उतरकर क्रोधसहित सञ्ज्वलनकषायचतुष्क को बाँधता है अथवा मरणकर देव असंयत होकर १७ प्रकृति को बाँधता है सो तीन प्रकृति रूप स्थान में भी दो भुजकार बन्ध हुए। चारों सज्ज्वलनकषाय को बाँधता हुआ नीचे उतरकर सवेदभाग में पुरुषवेद सहित पाँचप्रकृति को बाँधने लगा और मरणकर देव असंयमी हुआ तो वहाँ १७ प्रकृति का बन्ध करने लगा। इस प्रकार चार प्रकृति रूप स्थान में भी दो भुजकारबन्ध जानना । पाँच प्रकृतियों को बाँधता हुआ नीचे उतरकर अपूर्वकरणगुणस्थान में ९ प्रकृति का बन्ध करता है अथवा मरणकर देव असंयमी होकर १७ प्रकृतियों को बाँधता है सो पाँच प्रकृति रूप स्थान में ये दो भुजकारबन्ध
जानना ।
अपूर्वकरण या अप्रमत्त अथवा प्रमत्तगुणस्थान में ९ प्रकृति का बन्ध करता हुआ क्रम से उतरकर देशस्यती होता है और वहाँ १३ प्रकृति का बन्ध करता है अथवा असंयमी होकर या मरणकर देव असंयमी होकर १७ प्रकृतियों को बाँधता है अथवा प्रथमोपशमसम्यक्त्वी सासादनगुणस्थानवर्ती होकर २१ प्रकृतियों का बन्ध करता है और प्रथमोपशमसम्यक्त्वी या वेदकसम्यग्दृष्टि मिथ्यात्व को प्राप्त होकर २२ प्रकृतियों का बन्ध करता है, इस प्रकार ९ प्रकृति रूप बंधस्थान में चार भुजकार बन्ध हुए । १३ प्रकृतियों को बाँधता हुआ असंयत या देव असंयत होकर १७ प्रकृतियों का बन्ध करता है अथवा उपशमसम्यग्दृष्टि सासादन गुणस्थान को प्राप्त हो २१ प्रकृति का बन्ध करने लगा, अथवा प्रथमोपशम या क्षयोपशम (वेदक ) सम्यग्दृष्टि मिथ्यात्व को प्राप्त होकर २२ प्रकृति का बन्ध करता है। इस प्रकार १३ प्रकृति रूप बन्धस्थान में तीन भुजकारबन्ध जानना । १७ प्रकृति का बन्ध करता हुआ प्रथमोपशमसम्यग्दृष्टि सासादनगुणस्थानवर्ती होकर २१ प्रकृतियों को बाँधता है अथवा प्रथमोपशमसम्यग्दृष्टि या वेदकसम्यग्दृष्टि अथवा मिश्रगुणस्थानवर्ती जीव मिथ्यात्व को प्राप्त होकर २२ प्रकृतियों का बन्ध करता है इस प्रकार १७ प्रकृति रूप बन्धस्थान में दो भुजकारबन्ध हुए तथा २१ प्रकृतियों का बन्ध करते हुए मिथ्यात्व को प्राप्त होकर २२ प्रकृतियों का बन्ध करने लगा इस प्रकार २१ प्रकृति रूप बन्ध स्थान में एक भुजकार बन्ध हुआ । इस प्रकार सर्व २+२+२+२+२+४+३+२+१=२० भुजकारबन्ध जानना | अब अल्पतरबन्ध कहते हैं, अनादि अथवा सादिमिथ्यादृष्टि जीव तीनकरण करता हुआ अनिवृत्तिकरण
१. प्राकृत पंचसंग्रह पृष्ट १९२ से १९५ भी देखो ।