Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-४७३
स्थान और १९२० प्रकृतियाँ होती हैं। तथैव असंयतगुणस्थानसम्बन्धी औदारिकमिश्रकाययोगमें स्त्रीवेद, नपुंसकवेद नहीं होनेसे पूर्वोक्त आठकूटोंमें तीन-तीन वेद लिखे थे, उनके स्थान में एक पुरुषवेद ही जानना। इसप्रकार आठकूटोंके आठस्थान और ६० प्रकृति को चारकषाय, एकवेद और पूर्वोक्त दो युगलसे गुणाकरनेपर जो आठभंग बने उनसे गुणाकर के पुन: एकयोगसे गुणा किया तो ६४ स्थान और ४८० प्रकृतियाँ हुईं। प्रमत्तसंयतगुणस्थानके आहारककाययोग और आहारकमिश्रकाययोगमें स्त्रीनपुंसकवेदरहित आठकूटोंके आठस्थान और ४४ प्रकृतियोंको आठभंगोंसे गुणाकरके पुनः आहारकआहारकमिश्रकाययोगरूप दो योगोंसे गुणाकरनेपर १२८ स्थान और ७०४ प्रकृतियाँ होती हैं।
सासादन-असंयत व प्रमत्तगुणस्थानसम्बन्धी उदयस्थान व प्रकृतियोंकी योगकी अपेक्षा संख्याको बतानेवाली संदृष्टि
योग संख्या
प्रकृति - योग
उदयस्थान x
योग
गुणस्थान उदयस्थान प्रकृति
संख्या
. असंयत असंयत प्रमत्त
४४
३२ x १-३२ ८ x २१६६० x २-१२७
००
... वैलियकमिश्र २ वै. मिश्र,कार्मण १ औदारिकमिश्र २ आहारकद्विक
८ - २-१६
४४ - २८८
सासादन असंयत व प्रमत्त इन तीनगुणस्थानोंमें उदयस्थानोंकी अपेक्षा भङ्गों की संदृष्टिसासावनगुणस्थानमें उदयस्थान ४ प्रत्येकके भङ्ग १६ अतः ४ ४ १६ = ६४ असंयतगुणस्थानमें उदयस्थान १६ प्रत्येकके भङ्ग १६ अतः १६ x १६ = २५६ असंयतगुणस्थानमें उदयस्थान ८ प्रत्येकके भङ्ग ८ अतः ८५ ८ = ६४ प्रमत्तगुणस्थानमें उदयस्थान १६ प्रत्येकके भङ्ग ८ अतः १६ x ८ = १२८
५१२
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