Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-४७४ प्रकृतियोंकी अपेक्षा उपर्युक्त तीनगुणस्थानोंमें भङ्गों की संदष्टि-........... सासादनगुणस्थानमें प्रकृतियाँ ३२ प्रत्येकके भङ्ग १६ अत: ३२४१६ = ५१२ असंयतगुणस्थानमें प्रकृतियाँ १२० प्रत्येकके भरु १६ अत: १२०४१६ = १९२० असंयतगुणस्थानमें प्रकृतियाँ ६० प्रत्येकके भङ्ग ८ अतः ६०४८ - ४८० प्रमत्तगुणस्थानमें प्रकृतियाँ ८८ प्रत्येकके भङ्ग ८ अतः ८८४८ - ७०४
आगे उक्त स्थानोंके प्रकृतिप्रमाणोंमें कम किए हुए वेदोंका ग्रन्थकर्ता स्वयं निषेध करते हैं
णत्थि णउंसयवेदो, इत्थीवेदो णउंसइत्थिदुगे।
पुव्वुत्तपुण्णजोगगचदुसुट्ठाणेसु जाणेजो॥४९७ ।। अर्थ- पूर्वमें कहे हुए अपर्याप्तयोगको प्राप्त चारस्थानोंमें क्रमसे नपुंसक-स्त्रीवेद नहीं हैं और शेष दो स्थानोंमें भी नपुंसक-स्त्रीवेद नहीं हैं।
विशेषार्थ- सासादनगुणस्थानके वैक्रियकमिश्रकाययोगमें नपुंसकवेद नहीं है, क्योंकि सासादनगुणस्थानवाला मरणकर नरकमें नहीं जाता है। असंयतगुणस्थानके वैक्रियकमिश्च व कार्मणकाययोगमें स्त्रीवेद नहीं है, क्योंकि असंयतगुणस्थानवर्ती मरणकर स्त्रीवेदी नहीं होता है। असंयतगुणस्थानके ही औदारिकमिश्रकाययोगमें और प्रमत्तगुणस्थानके आहारक-आहारकमिश्रकाययोगमें स्त्री व नपुंसकवेद नहीं हैं, क्योंकि असंयतगुणस्थानवर्ती नपुंसक व स्त्रीवेदसहित तिर्यञ्च और मनुष्यों में उत्पन्न नहीं होता है तथा स्त्री व नपुंसकवेदवालेके आहारक-आहारकमिश्रकाययोग नहीं होता है। यहाँ मिथ्यात्वगुणस्थानसे अपूर्वकरणगुणस्थानपर्यन्त जितने स्थान हैं उन सभी को जोड़कर उनमें २४ भंगोंसे गुणा करने पर जो लब्ध आवे उसमें अनिवृत्तिकरणगुणस्थानके सवेद-अवेदभाग और सूक्ष्मसाम्परायगुणस्थान के १५३ स्थान तथा सासादन, असंयत और प्रमत्तवर्ती अपर्याप्तावस्थाके ५५२ स्थान मिलाकर सबका जोड़ करना चाहिए।
उपर्युक्त विधिसे योगोंकी अपेक्षा सर्वस्थानोंका जोड़ करनेपर जो संख्या प्राप्त हुई उसका प्रमाण कहते हैं
तेवण्णणवसयाहियबारसहस्सप्पमाणमुदयस्स ।
ठाणवियप्पे जाणसु जोगं पडि मोहणीयस्स ॥४९८ ।। अर्थ- इसप्रकार मोहनीयकर्मके उदयस्थानोंके भेद योगोंकी अपेक्षा १२,९५३ जानना।