Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड - ४७२
अनिवृत्तिकरणगुणस्थान के' सवेदभाग में एक स्थान और दो प्रकृति हैं । इनको ९ योगों से गुणा -करने ९ स्थान और १८ प्रकृति होती है, इनको १२ भंगोंसे गुणा करने पर १०८ स्थान और २१६ प्रकृतियाँ होती हैं। अनिवृत्तिकरणगुणस्थान के अवेदभाग में एकस्थान और एकप्रकृति है। इनको ९ योगों से गुणा करनेपर ९ स्थान और ९ प्रकृतियाँ होती हैं। पुनः इनको ४ भक्तों से गुणा करें तो ३६ स्थान एवं ३६ ही प्रकृतियाँ होती हैं। सूक्ष्मसाम्परायगुणस्थानमें एकस्थान और एकप्रकृतिको ९ योगों से गुणा करें तो ९ स्थान तथा ९ प्रकृतियाँ, पुनः इनको १ भङ्गसे गुणा किया तो भी ९ स्थान और ९ प्रकृतियाँ ही होती हैं।
पूर्वमें जिन योगोंके लिए यह कहा था कि इनका वर्णन पृथक् करेंगे सो अब उन्हीं योगों के विशेष कथन को बताते हैं
सासण अयदपमत्ते, वेगुव्वियमिस्स तं च कम्मयियं । ओरालमिस्स हारे, अडसोलडवग्ग अट्ठवीससयं ॥४९६ ॥
अर्थ - सासादनगुणस्थानके वैक्रियकमिश्रकाययोगमें आठका वर्ग अर्थात् ६४ स्थान हैं। अस्पतगुणस्थानके वैक्रियकमिश्रकाययोग और कार्मणकाययोगमें १६ का वर्ग अर्थात् २५६ स्थान हैं। असंयतगुणस्थानके औदारिकमिश्रकाययोगमें आठका वर्ग अर्थात् ६४ स्थान हैं। अप्रमत्तगुणस्थानके आहारककाययोग और आहारकमिश्रकाययोगमें १२८ स्थान हैं।
विशेषार्थ - सासादनगुणस्थानके वैक्रियकमिश्रकाययोगमें ६४ स्थानोंमें ५१२ प्रकृति हैं सो ही कहते हैं
सासादनगुणस्थानसम्बन्धी जो चारकूट बतलाए थे उनमें तीनवेदोंमें से एकका उदय कहा था, किन्तु यहाँ नपुंसक वेदबिना शेष दो वेदोंमें से एकका उदय जानना । यहाँ ९ प्रकृतिरूप एक, ८ प्रकृतिरूप दो और ७ प्रकृतिरूप एक ऐसे चारस्थान और उनकी ३२ प्रकृतियाँ हैं। इनको चारकषाय, दोवेद, हास्यरति तथा अरति - शोकरूप दो युगलों को परस्पर गुणा करने से बने १६ भंगोंसे गुणा करनेपर ६४ स्थान और ५१२ प्रकृतियाँ होती हैं। असंयतगुणस्थानसम्बन्धी वैक्रियकमिश्र और कार्मणकाययोगके पूर्वमें कहे गए आठ कूटोंमें स्त्रीवेदबिना दो वेदोंमें से एक वेदका उदय यहाँ है। अतः इन कूटोंमें आठस्थान और ६० प्रकृति हैं। इनको चारकषाय और स्त्रीवेदबिना दो वेद तथा हास्य- रति, अरति शोकरूप दो युगलोंको परस्पर गुणा करनेपर जो १६ भंग बने हैं उनसे गुणा करनेसे एवं २ योगोंसे गुणा करके २५६
१. प्रा. पं. स. पू. ४५५ गाथा ३४२ ॥ ३. प्रा. पं. सं. पू. ४५३ गाथा ३३९ ।
२. प्रा. पं. सं. पू. ४५३ गाधा ३३८ । ४. प्रा. पं. सं. पू. ४५४ गाथा ३४० ।