Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-४७६
२ संयमसे गुणा करनेपर दोस्थान और दोप्रकृति होती हैं, इनको चारभंगोंसे गुणा करना । सूक्ष्मसाम्परायमें एकस्थान, एकप्रकृति और एकही संयम है एवं भंग भी एकही है। यहाँ प्रमत्त-अप्रमत्त व अपूर्वकरण इन तीनगुणस्थानोंके ५६ स्थानोंको २४ से गुणा करनेपर १३४४ और अनिवृत्तिकरणके सवेद-अवेदभाग एवं सूक्ष्मसाम्परायगुणस्थान के ३३ स्थान मिलानेसे १३७७ स्थान हो जाते हैं।' | गुणस्थान उदयविकल्प | संयम | गुणाकार |
सर्वभंग प्रमत्तसंयत
५७६ अप्रमत्तसंयत अपूर्वकरण अनिवृत्तिकरण सूक्ष्मसाम्पराय
सर्व उदयविकल्प
आगे मोहनीयकर्मकी उदय प्रकृतियोंके भेद कहते हैं
तेवण्णतिसदसहियं', सत्तसहस्सप्पमाणमुदयस्स ।
पयडिवियप्पे जाणसु, संजमलंबेण मोहस्स॥५०२ ॥ अर्थ-संयमकी अपेक्षासे मोहनीयकी उदयप्रकृतियोंके भेद ७३५३ मात्र हैं ऐसा जानना चाहिए। (इनका विशेष विवरण निम्नलिखित सन्दृष्टि के अनुसार जानना) संयमकी अपेक्षा मोहनीयकर्मके उदयस्थान और उनमें पाई जानेवाली प्रकृतियोंकी संदृष्टि
प्रकृति x संयम x भंग ४४४३ = १३२४२४३१६८
प्रमत्त
गुणस्थान | उदयस्थान x संयम - भंग |
८४३ - २४४२४ = ५७६
८४३ = २४४२४ - ५७६ अपूर्वकरण | ४४२ = ८४२४ = १९२
अप्रमत्त
४४४३ = १३२x२४-३१६८
२०४२ = ४०४२४ - ९६०
१. प्रा.पं.सं. पृ. ४७८।
२. देखो प्रा. पं.सं. पु.४८० गाथा ३९०१