Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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१
गुणस्थान
मिथ्यात्व
सासादन
मिश्र
असंयत
देशसंयत
प्रमत्त
अप्रमत्त
अपूर्वकरण
जोड़
उदय
स्थान सं.
८
४
४
८
४
५२
अनिवृत्तिकरण १
प्रथम भाग
अनिवृत्तिकरण
शेष भाग सूक्ष्मसाम्पराय १
१. पं.सं. पू. ४६७ ।
१
गोम्मटसार कर्मकाण्ड - ४६८
प्रकृति संख्या उपयोगसंख्या
६८-३६+३२
३२
३२
३२+२८=६० Terificatio २८+ २४ =५२
२४+२०= ४४
२४+२०-४४
२०
३५२
२
१
५
५
६
६
७
'७
७
४९
७
७
उदवस्थान x
उपयोग
८४५-४०
४×५ = २०
४x६ = २४
1xE=X1
८×६ =४८
_८४७= ५६
८×७=५६
४x७ = २८
२. देखो प्रा. पं.सं. पू. ४६६ गा. ३६४ ।
३२०
?x=19
१ x ७ = ७
१ × ७ = ७
प्रकृतिx उपयोग
६८×५ = ३४०
३२४५=१६०
३२x६-१९२
३६०
५२x६= ३१२
४४४७= ३०८
४४x७ - ३०८
२०४७ १४०
२१२०
२x७=१४
१४७ =७
आगे मोहनीयकर्म के उदयस्थानों के भेदों की सर्वसंख्या का प्रमाण कहते हैं
२णवणउदिसगसयाहिय सत्तसहस्सप्पमाणमुदयस्स । ठाणवियप्पे जाणसु, उवजोगे मोहणीयस्स ॥४९२ ।।
१×७= ७
अर्थ - इस प्रकार गुणाकार करने पर उपयोग की अपेक्षा मोहनीय कर्म के उदयस्थानों के सर्वभेद ७७९९ हुए, ऐसा जानना चाहिए।
अब उपयोग की अपेक्षा मोहनीयकर्म के उदयस्थानों में पाई जाने वाली प्रकृतियों की संख्या कहते हैं