Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-४४४
मिश्र-असंयतगुणस्थान में मोहनीय कर्म की १७ प्रकृतियों के बंध में २ भंग हैं--- १. बारहकषाय + पुरुषवेद + हास्य-रति + भय-जुगुप्सा। २. बारहकषाय + पुरुषवेद + अति-शोक + भय-जुगुप्सा |
देशसंयतगुणस्थान में मोहनीय कर्म की १३ प्रकृतियों के बन्ध में २ भंग हैं--- १. आठकषाय + पुरुषवेद + हास्य-रति + भय-जुगुप्सा । २. आठकषाय + पुरुषवेद + अरति-शोक + भय-जुगुप्सा।
प्रमाणस्थान में मोहनीय बने की प्रकृतियों के बन्ध में २ भंग हैं१. चारकषाय + पुरुषवेद + हास्य-रति + भय-जुगुप्सा। २. चारकषाय + पुरुषवेद + अरति-शोक + भय-जुगुप्सा |
अप्रमत्त-अपूर्वकरणगुणस्थान में मोहनीय कर्म की ९ प्रकृतियों के बंध में १ भंग है-- १. चारकषाय + पुरुषवेद + हास्य-रति + भय-जुगुप्सा |
अनिवृत्तिकरणगुणस्थान के प्रथम भाग में ५ प्रकृति के बन्ध में १ भंग है-- १. चारकषाय + पुरुषवेद ।
अनिवृत्तिकरण के द्वितीयभाग में ४ प्रकृति के बन्ध में १ भंग है— १. सञ्चलनक्रोध-मान-माया-लोभरूप ४ कषाय ।
अनिवृत्तिकरण के तृतीयभाग में ३ प्रकृति के बन्ध में १ भंग है१. सञ्चलनमान-माया-लोभरूप ३ कषाय ।
अनिवृत्तिकरणगुणस्थान के चतुर्थभाग में २ प्रकृति के बन्ध में १ भंग है१. सज्वलनमाया-लोभरूप २ कषाय ।
अनिवृत्तिकरणगुणस्थान के पञ्चमभाग में १ प्रकृति के बन्ध में १ भंग है— १. सज्वलनलोभरूप १ कषाय ।
इस प्रकार मिथ्यात्वगुणस्थान से अनिवृत्तिकरणगुणस्थान पर्यन्त मोहनीय कर्म की बन्धयोग्य प्रकृतियों के स्थान और उनके भंग जानने चाहिए।