Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड- ४४७
के अन्त समय में २२ प्रकृति का बन्ध करता हुआ अनन्तर समय में प्रथमोपशमसम्यक्त्वी होकर अथवा सादिमिध्यादृष्टि २२ प्रकृति का बन्ध करते हुए विशुद्धि से वेदकसम्यग्दृष्टि होकर असंयतगुणस्थान में १७ प्रकृतियों का बंध करता है या देशसंयती होकर १३ प्रकृतियों का बन्ध करता है अथवा अप्रमत्तगुणस्थानवर्ती होकर ९ प्रकृतियों को बाँधता है; इस प्रकार १७ प्रकृति के बन्ध स्थान में दो अल्पतरबन्ध हैं । १३ प्रकृति का बन्ध करता हुआ अप्रमत्तसंयत होकर ९ प्रकृति का बन्ध करता है तथैव इन्हीं ९ प्रकृतियों का बन्ध करते हुए अपूर्वकरणगुणस्थान में अथवा अनिवृत्तिकरण गुणस्थान के प्रथमभाग में ५ प्रकृति को बाँधता है । पाँच प्रकृतियों को बाँधता हुआ द्वितीय भाग में चार प्रकृति का बन्ध करता है तथा तृतीय भाग में ३ प्रकृति का, चतुर्थभाग में दो प्रकृति का, पाँचवें भाग में एक प्रकृति का बन्ध करता है। इस प्रकार इन स्थानों में एक-एक अल्पतरबन्ध है, ये सर्व १९ अल्पतर हैं । वे इस प्रकार हैं- २२ प्रकृति रूप स्थान के ३, १७ प्रकृति रूप स्थान के २, १३ प्रकृति रूप स्थान का १, नौ प्रकृति रूप स्थान का १, पाँच प्रकृति रूप स्थान का १, चार प्रकृति रूप स्थान का १, तीन प्रकृति रूप स्थान का १ और दो प्रकृति रूप स्थान का १ ये सर्व ११ अल्पतरबन्ध जानना तथा दो अवक्तव्यबन्ध हैं। बीस भुजकार, दो अवक्तव्य और ग्यारह अल्पतरबन्धों में जितनी प्रकृतियों का बंध कहा उतनी ही प्रकृतियों का बंध द्वितीयादिक समय में भी होवे सो अवस्थित बंध है अतः २०+२+११=३३ ये सर्व अवस्थितबन्ध
जानना ।
अथानन्तर भुजकारादिबन्ध के भंगों की संख्या कहते हैं—
सत्तावीसहियस्यं, पणदालं पंचहत्तरिहियसयं । भुजगारप्पदराणि य, अवट्ठिदाणिवि विसेसेण ॥ ४७१ ॥
अर्थ- विशेषपने से अर्थात् प्रकृतियों के परिवर्तन की अपेक्षा से भुजकार बन्ध के १२७, अल्पतरबंध के ४५ और अवस्थितबन्ध के १७५ भंग हैं।
उपर्युक्त गाथा में कथित भुजकारादिबन्धों में सर्वप्रथम भुजकारबन्ध के भंगों का विशेषतापूर्वक वर्णन करते हैं
भ चउवीसं बारस, वीसं चउरट्ठवीस दो दो य । थूले पणगादीणं, तियतिय मिच्छादिभुजगारा ॥। ४७२ ।।
अर्थ - भंगों की विवक्षा से विशेष भुजकार भंग मिथ्यात्व गुणस्थान में नहीं हैं, सासादनगुणस्थान में २४, मिश्रगुणस्थान में १२, असंयतगुणस्थान में २०, देशसंयत गुणस्थान में २४, प्रमत्तगुणस्थान में २८, अप्रमत्तगुणस्थान में २, अपूर्वकरणगुणस्थान में २ और अनिवृत्तिकरणगुणस्थान में पाँच आदि