Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोमाटामा कर्मकाण्ड -2: ६६. ... .. ... .. . .. सूक्ष्मसाम्परायगुणस्थान में एक सूक्ष्मलोभ के उदयरूप एक ही कूट है।
सूक्ष्मसाम्पराय का कूट
इस प्रकार कूटाकार रूप से मोहनीय कर्म के उदयस्थान कहे।
अथानन्तर मिथ्यात्व, असंयत, देशसंयत, प्रमत्त और अप्रमत्तगुणस्थानों में विशेष रूप से कथन करते हैं
अणसंजोजिदसम्मे, मिच्छं पत्ते ण आवलित्ति अणं।
उवसमखइये सम्म, ण हि तत्थवि चारि ठाणाणि ॥४७८ ॥ अर्थ- अनन्तानुबन्धी कषाय का जिसके विसंयोजन हो गया है ऐसे वेदक या उपशमसम्यग्दृष्टि के मिथ्यात्वकर्म के उदय से मिथ्यात्वगुणस्थान होता है। उसके बन्धावली या अचलावलीकाल पर्यंत अनन्तानुबन्धी का उदय नहीं होता तथा पहले अनन्तानुबंधी थी, किन्तु अब उसका विसंयोजन कर दिया इसलिए उस जीव के आवलीप्रमाण काल तक अनन्तानुबन्धी का उदय नहीं आता इस अपेक्षा मिथ्यादृष्टि के अनन्तानुबन्धी रहित चारकूट और जानना।
___अनन्तानुबन्धीरहित मिथ्यात्वगुणस्थान के कूट
भय-जुगुप्सा हास्य-रति २-२ अरति-शोक २-२
२-२
वेद । १११ । कषाय ३ ३ ३ ३ अनं.बंधी रहि.
१ मिथ्यात्व इनमें प्रथमकूट नौ प्रकृतिरूप दूसरे व तीसरे में आठ प्रकृतिरूप और चतुर्थभाग में सात प्रकृति रूप उदयस्थान जानने तथा उपशम सम्यक्त्व में और क्षायिकसम्यक्त्व में सम्यक्त्व प्रकृति का उदय नहीं होता, सम्यक्त्व प्रकृति का उदय वेदक सम्यक्त्व में ही होता है, इसलिए असंयत, देशसंयत, प्रमत्त व अप्रमत्तसंयत के पूर्व में जो सम्यक्त्वमोहनीय सहित चार-चार कूट किए हैं वे वेदकसम्यक्त्व की अपेक्षा जानने। उन सभी कूटों में सम्यक्त्व प्रकृति घटाने पर उपशम और क्षायिकसम्यक्त्व की अपेक्षा असंयत, देशसंयत, प्रमत्त, अप्रमत्तगुणस्थान में चार-चार कूट और होते हैं।