Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-४५५
वेदकसम्यक्त्वसहित प्रमत्त-अप्रमत्तगुणस्थान के कूटों में प्रत्याख्यानकषाय कम करना और दोदो कषायों के स्थान पर एक-एक कषाय लिखना।
वेदकसम्यक्त्वसहित प्रमत्त-अप्रमत्तगुणस्थान के कूट
२ भय-जुगुप्सा १ भय | १ जुगुप्सा हास्य-रति २-२ अरति-शोक २-२ । २-२
२-२ १११ वेद कषाय १ १ १ १ सञ्चलन
सम्यक्त्व
अपूर्वकरणगुणस्थान में सम्यक्त्वऋषि कम करने से वार कू होते हैं... . . . .
२ भय-जुगुप्सा १ भय । १ जुगुप्सा हास्य-रति २-२ अरति-शोक . २-
२ २ -२
२-२ १ १ १
वेद कषाय १ १ १ १ सज्वलन
इस प्रकार मिथ्यात्व से अपूर्वकरणगुणस्थान पर्यन्त चार-चार कूट नियम से हैं। यहाँ पर हास्यादिकषाय की व्युच्छित्ति हुई इसलिए अनिवृत्तिकरण गुणस्थान के प्रथम भाग में सज्वलनरूप चार कषायों में एक कषाय, तीन वेदों में से एक वेद का उदय रूप एक ही कूट है तथा इनमें से वेद को कम करने से दूसरे भाग में सज्वलन रूप चार कार्यों में से एक कषाय के उदयरूप एक ही कूट है इनमें से क्रोध को घटाने पर तृतीय भाग में तीन सज्वलन कषाय में एक का उदयरूप एक ही कूट है तथा इनमें भी मानकषाय को घटाने पर चतुर्थभाग में दो सञ्चलनकषायों में से एक का उदय रूप एक ही कूट है इनमें से मायाकषाय को भी कम करने पर पाँचवें भाग में बादर सञ्चलन लोभ का उदयरूप एक ही कूट है।
अनिवृत्तिकरणगुणस्थानसम्बन्धी कूट प्रथमभाग
द्वितीयभाग । तृतीयभाग | चतुर्थभाग पञ्चमभाग १११ वेद ११११ कषाय | ११११ । १११ । ११