Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-४५३
अर्थ- एक काल में एक जीव के भय सहित ही प्रकृतियों का उदय होने से अथवा केवल जुगुप्सा सहित ही उदय होने से या भय और जुगुप्सा इन दो सहित ही उदय होने से अथवा च शब्द से दोनों ही से रहित उदय होने से कूट के आकार चार-चार हैं सो ये मिथ्यात्व से अपूर्वकरणगुणस्थान पर्यन्त निश्चय से होते हैं। इसी कारण यहाँ पर चार-चार कूट कहे गए हैं। कूट के आकारों की रचना इस प्रकार है
अनन्तानुबन्धी सहित मिथ्यात्व का कूट
अरति-शोक
२ २-२ १ १
| अति-शोक
२-२
जुगुप्सा हास्य-रति
१
भय-जुगुप्सा हास्य-रति
वेद कषाय मिथ्यात्व
वेद
४ ४ ४ ४
१
कषाय मिथ्यात्व
भय
अरति-शोक
... स
ति
सोक २.
हास्य-रति
४ ४ ४ ४ कषाय ___ १ मिथ्यात्व
मिध्यात्व प्रथम कूट में १० प्रकृतिरूप उदयस्थान जानना, दूसरे व तीसरे कूट में ९-९ प्रकृति रूप उदयस्थान, चतुर्थ कूट में ८ प्रकृतिरूप उदयस्थान जानना इस प्रकार ये चारों कूट अनन्तानुबन्धी सहित मिथ्यात्वगुणस्थान के जानना तथा इन चारों कूटों में मिथ्यात्व को हटाकर चारों कूट सासादनगुणस्थान
के जानना।
सासादनगुणस्थान के कूट
हास्य-रति
हास्य-रति
२ २-२ १ १ १ ४ ४ ४ ४
भय-जुगुप्सा अरति-शोक
वेद कषाय
१ २-२ १ १ १ ४ ४ ४ ४
जुगुप्सा अरति-शोक
वेद कषाय
हास्य-रति
हास्य-रति
२-२
अरति-शोक
२-२ १ १ १ ४ ४ ४ ४
भय अरति-शोक
वेद कषाय
४
४
४
४