Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-४५४
कषाय
मिथ्यात्व के स्थान पर सम्यग्मिथ्यात्व लिखना और जो कषाय चार-चार लिखी थीं वहाँ ३३ ही लिखना, क्योंकि एक काल में एक जीव के जो क्रोध का उदय है वह अनन्तानुबन्धी आदि चार रूप है। इन कूटों में अनन्तानुबन्धी कषाय के बिना तीन रूप ही है, इसी प्रकार मानादिक का उदय जानना, ऐसे ये चार कट मिश्रगुणस्थान के जानने !..... ... .......
मिश्रगुणस्थान के कूट . २ भव-जुगुप्सा । १ भय , १ जुगुप्सा | ० रति-हास्य २.२ अरति-शोक | २-
२ २ -२
२-२ वेद
३३३३ १ सम्यग्मिथ्यात्व वेदकसम्यग्दृष्टि के कूट में सम्यग्मिथ्यात्व के स्थान पर सम्यक्त्वप्रकृति लिखना। ये चार कूट वेदकसम्यक्त्वयुत अविरतगुणस्थान के जानने ।
वेदकसम्यक्त्व के असंयतगुणस्थान सम्बन्धी कूट
२ भय-जुगुप्सा 1 १ भय । १ जुगुप्सा हास्य-रति २-२ अरति-शोक | २-२ | २-२ वेद १ १ १ कषाय ३ ३ ३ ३ अनन्तानुबन्धी । ३ ३ ३ ३ ३३ ३३ सम्यक्त्व १
रहित वेदकसम्यक्त्वसहित देशसंयतगुणस्थानवर्ती के कूट में कषाय के स्थान में दो-दो कषायें लिखना, क्योंकि देशसंयतगुणस्थान में अनन्तानुबन्धी व अप्रत्याख्यानकषाय के उदय का भी अभाव है, उनका उदय नहीं पाया जाता।
वेदकसम्यक्त्वसंयुक्त देशसंयत्तगुणस्थान के कूट
भय-जुगुप्सा १ भय | १ जुगुप्सा हास्य-रति २-२ अरति-शोक वेद १ १ १ कषाय २ २ २ २ प्रत्याख्यान व सम्यक्त्व १ सञ्चलन