Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-४६१ पुरिसोदएण चडिदे, बंधुदयाणं च दुगवदुच्छित्ती।
सेसोदयेण चडिदे, उदयदुचरिमम्हि पुरिसबंधछिदी ॥४८४ ॥ अर्थ- जो जीव पुरुषवेद के उदय सहित श्रेणी चढ़ते हैं उनके पुरुषवेद की बंधन्युच्छित्ति व उदयव्युच्छित्ति एक साथ होती है अथवा चकार से बन्धव्युच्छित्ति उदय के द्विचरमसमय में होती है तथा स्वी व नपुंसकवेद के उदय से जो श्रेणि चढ़ते हैं उनके पुरुषवेद की बन्धव्युच्छित्ति दोनों (स्त्री-नपुंसक) वेदों के उदय के द्विचरमसमय में होती है। अथवा सवेदभाग के चरम समय तक पुरुषवेद का बंधक रहता है।
विशेषार्थ- कोधसंजलणपुरिसवेदोदएणक्खवगसे िचडिदस्स सवेदियदुचरिमसमए छण्णोकसाएहि सह खविदपुरिसवेदचिराणसंतस्स सवेदियचरिमसमए समयूणदोआवलियमेत्तपुरिसवेदणवकसमयपबद्धाणमुवलंभादो। अर्थात् क्रोधसञ्चलन और पुरुषवेद के उदय के साथ क्षपकश्रेणी पर चढ़ा है अतएव जिसने सवेदभाग के द्विचरमसमय में छह नोकषायों के साथ पुरुषवेद के सत्ता में स्थित पुराने कर्मों का नाश कर दिया है, उसके सवेद भाग के चरम समय में एक समय कम दो आवलीप्रमाण काल तक स्थित रहने वाले पुरुषवेद संबंधी नवकसमयप्रबद्ध पाए जाते हैं। अतः पाँच प्रकृतिक स्थान का जघन्य और उत्कृष्टकाल एक समय कम दो आवली होता है। इससे जाना जाता है कि पुरुषवेद की बंधव्युच्छित्ति उदय के द्विचरमसमय में होती है।
पणबंधगम्मि बारस, भंगा दो चेव उदयपयडीओ।
दोउदये चदुबंधे, बारेव हवंति भंगा हु ॥४८५॥ अर्थ-- अनिवृत्तिकरणगुणस्थान के प्रथम भाग में ५ प्रकृतियों का बन्ध होता है। इसमें दो प्रकृति-रूप उदयस्थान है और इसके भंग (४ कषाय ३ वेद की अपेक्षा) १२ हैं। नवम गुणस्थान के ही द्वितीय भाग में ४ प्रकृतियों का बन्ध है वहाँ भी एक समय पर्यंत दो प्रकृतियों के उदय रूप १२ भंग हैं, इस प्रकार दो प्रकृति के उदय रूप दो बधस्थानों में २४ भंग हैं।
कोहस्स य माणस्स य, मायालोहाणियहिभागम्हि । चदुतिदुगेक्कं भंगा, सुहुमे एक्को हवे भंगा ॥४८६॥
१. जयधवल पु.२ पृ. २३४-२३५॥ २. जयधवल पु. २ पृ.२४० एवं जयधवल १४/११७। ३. जयध्वल पु.२ पृ. २४३]