Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड - ४५९
अनन्तानुबंधी प्रकृति सहित हैं, मिश्रगुणस्थान में सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृति सहित, असंयतगुणस्थान में सम्यक्त्व प्रकृति सहित और देशसंयतगुणस्थान में अप्रत्याख्यानकषायरहित स्थान हैं। इस प्रकार प्रकृति भेद से अपुनरुक्तता जाननी चाहिए।
एक य छक्केयारं एयारेयारसेव णव तिण्णि । एदे चउवीसगढ़ा चवीसेयार दुगठाणे ।।४८१ ॥
अर्थ - मिथ्यात्वादि सर्वगुणस्थानों में १० प्रकृतिरूप एक, ९ प्रकृतिरूप छह, ८-७ व ६ प्रकृतिरूप ११ - ११, ५ प्रकृतिरूप ९ और चार प्रकृतिरूप ३ स्थान हैं। ये सर्वस्थान २४ - २४ भंगों से सहित हैं तथा दो प्रकृतिरूप १ स्थान के २४ भंग और एक प्रकृतिरूप एक स्थान के ११ भंग हैं।
विशेषार्थ - उपर्युक्त १० प्रकृति रूप एक स्थान तो मिध्यात्वगुणस्थान में ही हैं, ९ प्रकृति रूप ६ स्थान हैं ये छह स्थान पहले कूटों में २ व पिछले कूटों में एक इस प्रकार मिथ्यात्वगुणस्थान में तो ३, सासादन - मिश्र और असंयतगुणस्थान सम्बन्धी पहले कूटों में एक-एक और एक इस प्रकार सर्व ६ स्थान हैं । ८ प्रकृतिरूप ११ स्थानों में से मिथ्यादृष्टि के पहले कूटों में एक तथा पिछले कूटों में २ इस प्रकार तीनस्थान, सासादन व मिश्रगुणस्थान के दो-दो, असंयतगुणस्थान में पहले कूटों में २ तथा पिछले कूटों में एक इस प्रकार ३, देशसंयतगुणस्थान में पहले कूटों में एक इस प्रकार ८ प्रकृति के ११ स्थान हैं । ७ प्रकृति रूप ११ स्थानों में मिथ्यात्वगुणस्थान के पिछले कूटों में एक तथा सासादन और मिश्रगुणस्थान के एक-एक स्थान, असंयतगुणस्थान में पहले कूटों में एक एवं पिछले कूटों में २ ऐसे ३ स्थान, देशसंयतगुणस्थान के पहले कूटों में २ व पिछले कूटों में एक ऐसे ३ स्थान एवं प्रमत्तअप्रमत्तगुणस्थान के एक-एक स्थान ऐसे ७ प्रकृति रूप ११ स्थान हैं । ६ प्रकृतिरूप ११ स्थानों में असंयत गुणस्थान के पिछले कूटों में एक, देशसंयतगुणस्थान के पहले कूटों में एक तथा पिछले कूटों में दो इस प्रकार ३ स्थान, प्रमत्त अप्रमत्तगुणस्थान के पहले कूटों में २-२ स्थान और पिछले कूटों में एक-एक स्थान ऐसे ३ - ३ स्थान जानना तथा अपूर्वकरणगुणस्थान में एक इस प्रकार ६ प्रकृतिरूप ११ स्थान हैं । ५ प्रकृति रूप ९ स्थानों में देशसंयतगुणस्थान के पिछले कूट में एक स्थान, प्रमत्तअप्रमत्तगुणस्थान के पहले कूटों में १-१ और पिछले कूटों में २-२ ऐसे ३-३ स्थान एवं अपूर्वकरणगुणस्थान के २ स्थान ये ९ स्थान ५ प्रकृति रूप हैं। चार प्रकृति रूप तीनस्थानों में प्रमत्तअप्रमत्तगुणस्थान के पिछले कूटों में एक-एक स्थान और अपूर्वकरणगुणस्थान में एक स्थान है, इस प्रकार तीन स्थान हैं ।
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१.
"एक य छक्केगार, एगारेगारसेत्र णव तिणि । एदेचदुवीसगदा, बारस दुग पंच एगम्मि ।। ३१२ ॥” “प्रा.पं.सं.पृ.४४२ ।”