Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड - ४५०
उपर्युक्त गुणस्थानोक्त भुजकारबन्ध सम्बन्धी भंगों की सन्दृष्टि
प्रकृति रूप
प्रकृति रूप
२१ व २२ प्रकृति रूप
सासादनगुणस्थान २१ प्रकृति से २२
मिश्रगुणस्थान १७ प्रकृति से
२२
असंयतगुणस्थान
देशसंयत गुणस्थान
१७ प्रकृति से
१३ प्रकृति से
प्रमत्तगुणस्थान
९
प्रकृति से
अप्रमत्तगुणस्थान ९
प्रकृति से
अपूर्वकरणगुणस्थान ९
प्रकृति से
अनिवृत्तिकरण :
प्रथम भाग ५
द्वितीयभाग ४
तृतीयभाग ३
चतुर्थभाग २
पंचमभाग १
प्रकृति से
प्रकृति से
प्रकृति से
१७
१७
२ भुजकारबन्ध के
✓
१७-२१-२२ प्रकृति रूप
३ भुजकारवन्ध के
१३-१७-२१-२२
४ भुजकारबन्ध के
प्रकृति रूप
१ भुजकारबन्ध के
प्रकृति रूप
१ भुजकारबन्ध के
९ व १७ प्रकृति रूप
५ व १७
४ व १७
प्रकृति से
३ व १७
प्रकृति से २ व १७
प्रकृति रूप
प्रकृति रूप
प्रकृतिरूप
प्रकृति रूप
के
अब अल्पतरबन्ध के भंग कहते हैं—
एक भुजकारबन्ध
एक भुजकारबन्ध के
२ भुजकारबन्ध के
२ भुजकारवन्ध के
२ भुजकारबन्ध के
- २४ भंग
२ भुजकारबन्ध के
२ भुजकारबन्ध
के
सर्वभंग
- १२ भंग
=
H
5
= २८ भंग
=
||||
=
2. W
H
२० भंग
=
२४ भंग
२ भंग
२ भंग
३ भंग
३ भग
३ भग
३ भग
३ भग
१२७
अप्पदरा पुण तीसं, णभ णभ छद्दोण्णि दोणि णभ एक्वं । थूले पणगादीणं, एक्केकं अंतिमे सुण्णं ॥ ४७३ ॥
अर्थ - मिथ्यात्वगुणस्थान से अपूर्वकरण पर्यन्त गुणस्थानों में तीस, शून्य, शून्य, छह, दो, दो, शून्य और एक प्रकृति रूप अल्पतर भंग होते हैं। स्थूल कषाय वाले १ वें गुणस्थान में पाँच आदि प्रकृति रूप एक-एक ही अल्पतरभंग होता है, किन्तु अन्तिम ५ वें भाग में शून्य अर्थात् अल्पतरभंग नहीं होता
है।
विशेषार्थ - मिथ्यात्वगुणस्थान में बाईस प्रकृति का बन्ध ६ प्रकार से होता है तथा यहाँ से मिश्रगुणस्थान अथवा असंयत्तगुणस्थान में जाकर १७ प्रकृतियों का बन्ध दो प्रकार से है अतः इनके एकएक प्रकार में ६-६ प्रकार होने से बाईस प्रकृति से १७ प्रकृति के बन्ध की अपेक्षा अल्पतरबन्ध के बारह