Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड - ४४९
करता है इसके ६ भंग हैं अतः २४६=१२ भंग इस भुजकारबन्ध के हुए। इस प्रकार प्रमत्तगुणस्थानसंबंधी ४ भुजकारबन्धों के २८ भंग होते हैं । तथैव अप्रमत्तगुणस्थान में ९ प्रकृति का बन्ध करता है सो यहाँ एक भंग है, यहाँ से मरणकर देव असंयत हुआ तो १७ प्रकृति का बन्ध करता है उसके दो भंग हैं इस प्रकार इस भुजकार बन्ध के १x२= २ भंग जानना ।
अपूर्वकरणगुणस्थान में भी अप्रमत्तगुणस्थानवत् भुजकार के २ भंग हैं, अनिवृत्तिकरणगुणस्थान के प्रथम भाग में ५ प्रकृति का बन्ध करता है सो गिरकर अपूर्वकरणगुणस्थान में ९ प्रकृति का बन्ध करने लगा जिसका १ भंग इस प्रकार १०१ = १ इसका एक भंग तथा यदि मरणकर देव असंयत हुआ तो १७ प्रकृति का बन्ध करता है जिसके २ भंग हैं अतः इस भुजकारबन्ध के भी १०२= २ भंग होते हैं। इस प्रकार अनिवृत्तिकरणगुणस्थान के प्रथमभाग में होने वाले दो भुजकार बन्ध के १+२=३ भंग होते हैं। अनिवृत्तिकरणगुणस्थान के द्वितीय भाग में चार प्रकृति का बन्ध करने लगा सो इसका एक भंग है वहाँ से प्रथम आकर प्रकृति करने लगा भंग भी एक है अतः इस भुजकार बन्ध के १x१ = १ ही भंग होता है, और यदि मरण करके देव असंयत हुआ तो वहाँ १७ प्रकृति का बन्ध करता है उसके दो भंग हैं इस प्रकार अनिवृत्तिकरणगुणस्थान के द्वितीयभाग सम्बन्धी २ भुजकार के २+१=३ भंग जानना । इसी गुणस्थान के तृतीय भाग में पहले ३ प्रकृति का बन्ध करता था उसका भंग एक है वहाँ से गिरकर यदि द्वितीय भाग में आवे तो चार प्रकृति का बन्ध करता है इसका एक भंग तो इस भुजकार के १×१ = १ ही भंग हुआ और यदि मरणकर देव असंयत होवे तो १७ प्रकृति का बन्ध करता है इसके दो भंग हैं अत: इस भुजकार के १x२=२ भंग होते हैं। इस प्रकार तृतीय भाग सम्बन्धी दो भुजकारों के १+२=३ भंग जानना । तथैव चतुर्थभाग में २ प्रकृति का बन्ध करता था उसका एक भंग है, वहाँ से गिरकर यदि तृतीय भाग में आवे तो ३ प्रकृति का बन्ध करने लगा उसका भी एक भंग है अतः इस भुजकारबन्ध के १०१ = १ भंग है। यदि मरणकरके देव असंयत होता है तो १७ प्रकृति का बन्ध करता है इसके दो भंग हैं सो १x२= २ भंग इस भुजकारबन्ध के होते हैं। इस प्रकार चतुर्थभाग में भी दो भुजकारों के १+२=३ भंग होते हैं। अनिवृत्तिकरणगुणस्थान के पञ्चमभाग में एक प्रकृति का बन्ध करता है उसका एक भंग है वहाँ से गिरकर चतुर्थभाग में आवे और दो प्रकृति का बन्ध करने लगे तो इसका एक ही भंग है अतः इस भुजकारबन्ध का १०१ = १ भंग है। यदि मरणकर देव असंयत हुआ तो १७ प्रकृति का बन्ध करता है सो इसके दो भंग हैं इसलिए इस भुजकारबन्ध सम्बन्धी १x२= २ भंग हैं। इस प्रकार पञ्चमभाग सम्बन्धी दो भुजकारों के १+२=३ भंग जानना ।