Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-४२८
कर्म कहलाता है। उसका अपनी कर्मरूप अवस्था का त्याग किए बिना अन्य स्वभाव रूप से संक्रमण करना कर्मसंक्रम कहलाता है। वह यद्यपि द्रव्यार्थिकनय की अपेक्षा से एक प्रकार का है तथापि पर्यायार्थिकनच की अपेक्षा से वह प्रकृतिसंक्रम आदि के भेद से चार प्रकार का है। इनमें से एक प्रकृति का दूसरी प्रकृतियों में संक्रमण होना प्रकृति संक्रम कहलाता है। जैसे क्रोधप्रकृति का मानादिक में संक्रमण होना प्रकृतिसंक्रम है। "जा हिदी ओकड्डिजदि वा उक्कड्डिजदि वा अण्णपयडिं संकामिज्जइ वा सो विदिसंकमो” अर्थात् जो स्थिति अपकर्षित, उत्कर्षित और अन्य प्रकृति रूप से संक्रमित होती है वह स्थितिसंक्रम है। "अणुभागों ओकड्डिदो वि संकमो, उक्काष्टिदो वि संकमो, अण्णपयडि णीदो वि संकमो"। अर्थात् अपकर्षित हुआ अनुभाग भी संक्रम है, उत्कर्षित हुआ अनुभाग भी संक्रम है तथा अन्य प्रकृति को प्राप्त हुआ अनुभाग भी संक्रम है।
___ "ज पदेसगमण्णपयडि णिज्जदे जत्तो पयडीदो तं पदेसगं णिज्जदि तिस्से पयडीए सो पदेससंकमो। एदेण परपयडिसंकतिलक्खणो चेव पदेससंकमोण ओकड्डमड्डणलक्खणो त्ति जाणाविदं, टिदि-अणुभागाणं र भोकटकालणाति पदेशसाराका अण्णशावावहीर अणुवलंभादो।" अर्थात् जो प्रदेशाग्र जिस प्रकृति से अन्य प्रकृति को ले जाया जाता है वह प्रदेशाग्र यत: ले जाया जाता है इसलिए उस प्रकृति का वह प्रदेशसंक्रम है। इस वचन द्वारा पर प्रकृति संक्रमलक्षण ही प्रदेशसंक्रम है, अपकर्षण-उत्कर्षणलक्षण नहीं यह ज्ञान कराया गया है, क्योंकि जिस प्रकार अपकर्षण-उत्कर्षण के द्वारा स्थिति और अनुभाग का अन्यरूप होना पाया जाता है उस प्रकार उनके द्वारा प्रदेशाग्र का अन्यरूप होना नहीं पाया जाता है।"
नवीन बन्ध होने पर ही बन्ध प्रकृति में अन्य स्वजाति प्रकृतियों का संक्रमण होता है। कहा भी है- "बंधे संकमदि त्ति एसो वि णाओ जाणाविदो।"५ जिस प्रकृति का बंध नहीं हो रहा है उस प्रकृति में अर्थात् उस प्रकृति रूप संक्रमण नहीं होता। संक्रमण भी एक प्रकार का बन्ध है। कहा भी है- "कथमेत्थ संकमस्स बंधगववएसो ति णासंकणिजं, तस्स वि बंधंतब्भावित्तादो। तं जहा- दुविहो बंधो अकम्मबंधो कम्मबंधो चेदि। तत्थाकम्मबंधो णाम कम्मइयवग्गणादो अकम्मसरू वेणावहिदपदेसाणं गहणं । कम्मबंधो णाम कम्मसरूवेणावट्टिदपोग्गलाणमण्णपयडिसरूवेण परिणमणं । तं जहा- सादत्ता बद्धकम्ममंतरंगपच्चयविसेसवसेणासादत्ताए जदा परिणामिजइ, जदा वा कसायसरूवेण बद्धा कम्मंसा बंधावलियं वोलाविय णोकसायसरूवेण संकामिजंति तदा सो कम्मबंधो उच्चइ, कामसरूवापरिच्चाएगेव कम्मंतरसरूवेण बज्झमाणत्तादो।"६ अर्थात् संक्रम को बन्ध संज्ञा कैसे प्राप्त होती है? ऐसी आशंका करना ठीक नहीं है, क्योंकि संक्रम का भी बन्ध में अन्तर्भाव हो जाता है।
१. जयधवल पु.८ पृ. १४ । ४. जयध. पु. ९ पृ. १६९/
२. जयधवल पु.८१.२४२1 ५. जयध. पु.८ पृ. ३३ ।
३. जयध. पु. ९१.३। ६. जयध. पु. ८ पृ. २।