Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोमटर कर्मकाण्ड - ४२३
कहा है वह असंख्यातगुणा है तथापि वह पल्य के अर्धच्छेदों के असंख्यातवें भाग ही है। जघन्य योग स्थानों को पल्य के अर्धच्छेदों के असंख्यातवें भाग से गुणा करने पर उत्कृष्टयोगस्थान होता है तथा कर्मस्थिति की नानागुणहानिशलाका का प्रमाण असंख्यातगुणा है अर्थात् पल्य की वर्गशलाका के अर्धच्छेदों को पल्य के अर्धच्छेदों में से घटाने पर जो प्रमाण शेष रहे उतने प्रमाण हैं। इससे पल्य के अर्धच्छेदों का प्रमाण अधिक है, अधिकता का यह प्रमाण वर्गशलाका के अर्धच्छेदों के बराबर है । इससे पल्य का प्रथमवर्गमूल असंख्यातगुणा है। द्विरूप वर्गधारा में पल्य के अर्धच्छेदरूप स्थान से असंख्यातस्थान व्यतीत होने पर पल्य का प्रथमवर्गमूल होता है, इससे कर्मस्थिति की एक गुणहानि के समयों का प्रमाण असंख्यातगुणा है सो ७०० को चार बार करोड़ से गुणा करने पर जो लब्ध आया उससे गुणित पल्य में नानागुणहानि के प्रमाण का भाग देने पर यह प्रमाण प्राप्त होता है। इससे कर्मस्थिति की अन्योन्याभ्यस्तराशि का प्रमाण असंख्यातगुणा हैं अतः नाना गुणहानि के प्रमाण बराबर दो का अंक लिखकर परस्पर गुणा करने पर अन्योन्याभ्यस्तराशि का प्रमाण होता है। इससे पल्य का प्रमाण असंख्यातगुणा है सो अन्योन्याभ्यस्तराशि के प्रमाण को पल्य की वर्गशलाका से गुणा करने पर पल्य का प्रमाण प्राप्त होता है, इससे कर्म की उत्कृष्टस्थिति संख्यातगुणी है। इस प्रकार एक सागर के १० कोड़ा कोड़ी पल्य हैं तो ७० कोड़ाकोड़ी सागर के पल्यों का प्रमाण ७०० को चार बार करोड़ से गुणा करने पर पल्य होते हैं। इससे विध्यात संक्रमण भागहार असंख्यातगुणा है तथापि वह सूच्यंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है अर्थात् सूच्यंगुल में आकाश के जितने प्रदेश होते हैं उनका असंख्यातवें भाग प्रमाण है। इस प्रकार विध्यात्तसंक्रमण रूप प्रकृतियों के परमाणुओं में सूच्यंगुल के असंख्यातवें भाग का भाग देने पर जो प्रमाण हो उतने परमाणु अन्य प्रकृति रूप होकर परिणमन करें उसे विध्यातसंक्रमण जानना चाहिए। इससे उद्वेलनभागहार असंख्यातगुणा फिर भी वह सूच्यंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है। उद्वेलनरूप प्रकृतियों के परमाणुओं में उद्वेलनभागहार का भाग देने पर जो लब्ध आवे उतने परमाणु अन्य प्रकृतिरूप होकर परिणमें उसे उद्वेलनसंक्रमण कहते हैं। इससे कर्मों के अनुभागबन्ध कथन में नानागुणहानि शलाका का प्रमाण अनन्त है, इससे उस अनुभाग की एक गुणहानि आयाम का प्रमाण अनन्तगुणा है, उसी की डेढ़ गुणहानि आयाम का प्रमाण एक गुणहानि आयाम के प्रमाण से आधा (१/२) अधिक है तथा अनुभाग की दो गुणहानि का प्रमाण डेढ़ गुणहानि के प्रमाण से आधा (१/२) अधिक है। अनुभाग की अन्योन्याभ्यस्तराशि का प्रमाण अनन्तगुणा जानना । इस प्रकार पञ्चभागहारों के अल्पबहुत्व का प्रसंग होने से अन्य का भी अल्पबहुत्व निरूपण किया।
पञ्चभागाहार (संक्रमण) सम्बन्धी अल्पबहुत्व का कथन करते हैं—
गुणसंक्रमण के द्वारा संक्रान्त होने वाले प्रदेशाग्र का अवहारकाल स्तोक है । अधः प्रवृत्तसंक्रम के द्वारा संक्रांत होने वाले प्रदेशाग्र का अवहारकाल असंख्यातगुणा है । विध्यातसंक्रम के द्वारा संक्रांत