Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-४२१
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स्थिर १ आदेय १ यशस्कीर्ति १ साधारणशरीर १ स्थावर १ दुर्भग १ दुःस्वर १ अशुभ १ सूक्ष्म १ अपर्याप्त १ अस्थिर १ अनादेय १ अयशस्कीर्ति तीर्थकर १ उच्चगोत्र १ नीचगोत्र १ अन्तराय ५
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ठिदिअणुभागाणं पुण, बंधो सुहुमोत्ति होदि णियमेण।
बंधपदेसाणं पुण, संकमणं सुहुमरागोत्ति ।।४२९॥ अर्थ- स्थिति और अनुभागबन्ध सूक्ष्मसाम्परायगुणस्थान पर्यंत ही है इसलिए स्थिति और अनुभाग का कारण कषाय है तथा बन्ध रूप हुए परमाणुओं का संक्रमण भी सूक्ष्मसाम्परायपर्यंत ही है। "बंधे अधापवत्तो"१ इस सूत्र के अभिप्राय से स्थितिबन्ध पर्यन्त ही संक्रमण संभव है।
१. गो. क. गाथा ४५६