Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-४२५
*अथ दशकरणचूलिका *
आगे नेमिचन्द्राचार्य १४ गाथाओं में दसकरणचूलिका का कथन करने की इच्छा करते हुए सर्वप्रथम अपने श्रुतगुरु को नमस्कार करते हैं
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जस्स य पायपसाएणणंतसंसारजलहिमुत्तिष्णो । वीरिंदणंदिवच्छो, णमामि तं अभयणंदिगुरुं ॥ ४३६ ॥
अर्थ- वीरेन्द्रनन्दी आचार्य का शिष्य मैं (ग्रन्थकर्ता नेमिचन्द्राचार्य) जिन श्रुतगुरु के चरण प्रसाद से अनन्तरूप संसारसमुद्र के पार को प्राप्त हुआ हूँ उन अभयनन्दी आचार्य को नमस्कार करता
हूँ।
अब दस करणों के नाम कहते हैं—
बंधुक्कट्टणकरणं, संकगमोदीरणा सत्तं ।
उदयुवसामणिधत्ती, णिकाचणा होदि पडिपयडी ॥ ४३७ ॥
अर्थ- बन्ध, उत्कर्षण, संक्रमण, अपकर्षण, उदीरणा, सत्त्व, उदय, उपशम, निकाचित ये दस करण कर्मप्रकृतियों के होते हैं।
अथानन्तर १० करणों का स्वरूप तीन गाथाओं से कहते हैं-
कम्माणं संबंधो, बंधो उक्कट्टणं हवे वही । संकमणमणत्थगदी, हीणा ओकट्टणं णाम ||४३८ ॥ अण्णत्थठियस्सुदये, संधुहणमुदीरणा हु अत्थित्तं । सत्तं सकालपत्तं, उदओ होदित्ति णिद्दिट्ठो ॥ ४३९ ॥
निधत्ति और
उदये संकमुदये, चउसुवि दादु कमेण णो सक्कं । ' उवसंतं च णित्ति णिकाचिदं होदि जं कम्मं ||४४० ॥
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१. उदाए संकमउदार चदुसु वि दादु कमेण धो सक्कं । उवसंतं च णिधत्तं णिकाचिदं चावि जं कम्मं ॥ (ध. पु. ६ पृ. २९५, ध. पु. ९ पृ. २३६ और ध. पु. १५ पृ. २७६ )