Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
View full book text
________________
गोम्मटसार कर्मकाण्ड-३८८
क्षपक अपूर्वकरण
।
३रा
|
१
। १३४ । १३४ (प्रथम सत्त्वस्थान की १३८ प्रकृति
____ में से आहारकचतुष्क रूप ४ प्रकृति
कम की) १ भंग, भुज्यभानमनुष्यायु ।
.
क्षपक
४था
।
१
अपूर्वकरण
। १३३ । १३३ (प्रथम सन्चस्थान सम्बन्धी १३८
प्रकृति में से आहारकचतुष्क और तीर्थकर प्रकृति कम की) १ भंग, भुज्यमानमनुष्यायु।
अब क्षपकअनिबृत्तिकरण में सत्त्वस्थान और भंग कहते हैं- .
एदे सत्तट्ठाणा, अणियहिस्सवि पुणोवि खविदेवि। सोलस अटेक्लेकं, छक्केचं एकमेक्क तहा॥३८६ ।। णिरयदुगं तिरियदुर्ग, विगतिगचउरक्खजादिथीणतियं । उज्जोवं आताविगि, साहारणासुहम थावरयं ।।३८६ क॥ मज्झडकसाय संढथीवेदं हस्सपमुहछक्कसाया।
पुरिसो कोहो माणो, अणियट्ठीभागहीण पयडिओ।।३८६ ख॥ अर्थ-क्षपकअपूर्वकरण के समान क्षपकअनिवृत्तिकरण में भी चार स्थान हैं और १६-८-११-६-१-१ और १ प्रकृति कम करने से आठ स्थान अन्य भी हैं। इन आठ की भी चार पंक्तियां करके पूर्ववत् क्रम से शून्यादि घटाने से ३२ भेद हो जाते हैं। इस प्रकार ४ और ३२ मिलकर क्षपकअनिवृत्तिकरण के ३६ स्थान जानना ।।३८३ ।।
नरकद्विक, तिर्यञ्चद्विक, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रियजाति, स्त्यानगृद्धिआदि तीननिद्रा, उद्योत, आतप, एकेन्द्रिय, साधारण, सुक्ष्म, स्थावर, मध्य की आठकषाय, नपुंसकवेद, स्त्रीवेद, हास्यादि छह नोकषाय पुरुषवेद, क्रोध और मान ये प्रकृतियां अनिवृत्तिकरण गुण स्थान में क्षय होती हैं ॥३८६ क ख ।
विशेषार्थ- गाथा ३८६ में जिन १६-८-१-१-६-१-१-१ प्रकृतियों को अनिवृत्तिकरण गुणस्थान में कम करने के लिए कहा गया है उनका नामोल्लेख मात्र गाथा ३८६ क ख में किया है। क्षपकअनिवृनिकरण गुणस्थान में अनुक्रम से एकेन्द्रियादि चार जाति, तिर्यञ्चगति, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी,