Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-४१८
शुभवर्णादि ४, अगुरुलघु, परघात, उच्छ्वास, प्रशस्तविहायोगति, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय, यशस्कीर्ति, निर्माण, औदारिकशरीर-औदारिकअंगोपांग, तीर्थङ्कर, वज्रर्षभनाराचसंहनन, पुरुषवेद और सज्वलनक्रोध-मान-माया इन ४७ प्रकृति बिना शेष ७५ प्रकृति गुणसंक्रमण की जानना। इस प्रकार प्रकृतियों में संक्रमण सम्बन्धी नियम कहा।
जिन-जिन प्रकृतियों में जो-जो कण-होगे हैं, उनकी क संवृष्टि:प्रकृतियों के नाम उद्वेलन संक्रमण | विध्यात संक्रमण | अधःप्रवृत्त | गुणसंक्रमण | सर्वसंक्रमण
संक्रमण ज्ञानावरण ५ नहीं है नहीं है
नहीं है | नहीं है दर्शनावरण ४ नहीं है नहीं है
नहीं है | नहीं है स्त्यानगृद्धिआदि निद्रा ३ नहीं है निद्रा-प्रचला २ नहीं है सातावेदनीय १ असातावेदनीय १ नहीं है अनन्तानुबन्धी ४
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अप्रत्याख्यानावरण ४
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प्रत्याख्यानावरण ४
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संज्वलनक्रोधादि ३
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सज्वलनलोभ १ नोकषाय ४ अरति-शोक २ नपुंसकवेद १ स्त्रीवेद १ पुरुषवेद १
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