Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड - ३८७
अथानन्तर उपशमक की अपेक्षा अनिवृत्तिकरण-सूक्ष्मसाम्पराय में तथा उपशान्तकषाय में एवं क्षपकअपूर्वकरण में सत्त्वस्थान और भंग कहते हैं
अर्थ - उपशमक अपूर्वकरण गुणस्थान के समान उपशमक अनिवृत्तिकरण- सूक्ष्मसाम्पराय और उपशान्तकषाय इन तीन गुणस्थानों में भी सन्वस्थान और भंग (गाथा ३८३ के समान) २४- २४ ही जानना । क्षपकअपूर्वकरण गुणस्थान में १० प्रकृति रहित एक स्थान की चार पंक्तियाँ करके क्रम से शून्य- १-४ और ५ प्रकृतियाँ कम करनी चाहिए। इस प्रकार स्थान ४ और उसके भंग भी चार होते
हैं।
विशेषार्थ - क्षपकअपूर्वकरण गुणस्थान में भुज्यमानमनुष्यायु बिना तीन आयु अनन्तानुबन्धी चतुष्क और दर्शनमोहनीय की २, इन दस प्रकृति बिना १३८ प्रकृति रूप एक सत्त्व स्थान की चार पंक्ति करना । यहाँ पूर्व के समान : प्रथम पंक्ति में शून्य, द्वितीय पंक्ति में तीर्थकर, तृतीय पंक्ति में आहारकचतुष्क तथा चतुर्थ पंक्ति में तीर्थङ्कर और आहारकचतुष्क घटाने पर क्रमश: १३८, १३७, १३४ और १३३ प्रकृति रूप चार स्थान होते हैं। इनमें भुज्यमानमनुष्यायुरूप एक-एक ही भंग है अतः चार ही भंग
'जानना ।
गुणस्थान
एवं तिसु उवसमगे, खवगापुव्र्व्वाम्मे दर्सार्ह परिहीणं । सव्वं चउपडि किच्चा, णभमेक्कं चारि पण हीणं ।। ३८५ ।।
क्षपत्र
अपूर्वकरण
क्षपक
अपूर्वकरण
क्षपकअपूर्वकरणगुणस्थानमें सत्त्वस्थान और भङ्गसम्बन्धी सन्दृष्टि -
सत्त्वस्थान
१ ला
२रा
भंगसंख्या प्रकृतिसंख्या,
१.
१
१३८
१३७
विशेष
१३८ (१४८ - १०, भुज्यमान आयुबिना ३
आयु, अनन्तानुबन्धी ४ कषाय दर्शनमोहनीय ३ )
१ भंग, भुज्यमानमनुध्यायु ।
उपर्युक्त १३८ में से १ तीर्थकर प्रकृति कम की।
१ भंग, भुज्यमानमनुष्यायु ।