Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
View full book text
________________
गोम्मटसार कर्मकाण्ड-३९७
प्रतिपक्षप्रकृति के बन्ध का आश्रय करके बन्ध विश्रान्ति को प्राप्त होने वाली प्रकृति सान्तरबन्धी है, इस प्रकार जो कहा है वह सान्तरबन्धी प्रकृतियों में प्रतिपक्ष प्रकृति के बन्ध के अविनाभाव को देखकर कहा है। वास्तव में तो एक समय बँधकर द्वितीय समय में जिस प्रकृति की बन्ध विश्रान्ति देखी जाती है वह सान्तरबन्ध प्रकृति है। जिसका बन्धकाल जघन्य भी अन्तर्मुहूर्तमात्र है वह निरन्तरबन्ध प्रकृति है, ऐसा ग्रहण करना चाहिए। अन्यत्र भी कहा है
यासां प्रकृतीनां जघन्यत: समयमात्रं बन्धः, उत्कर्षत: समयादारभ्य यावदन्तर्मुहूर्त न परतः, सान्तरबन्धाः, अन्तर्मुहूर्तमध्येऽपि सान्तरो विच्छेदलक्षणान्तरसहितो बंधो यासां ताः सान्तरा इति व्युत्पत्तेः । अन्तर्मुहूर्तोपरि विच्छिद्यमानबन्धवृत्तिजातिमत्यः सान्तरबन्धा इति पललितार्थ:: नम येनाभि अन्तर्मुदत यावन्नरन्तर्येण बन्ध्यन्ते ता निरन्तरबन्धाः, निर्गतमन्तरर्मुहूर्त मध्ये व्यवच्छे दलक्षणं यस्य तादृशो बन्धो यासामिति व्युत्पत्ते:, अन्तर्मुहूर्तमध्याविच्छिन्न बन्धवृत्तिजातिमत्य इति यावत् ।
अथानन्तर उपर्युक्त ९ प्रश्नों में से प्रथम तीन प्रश्नों के उत्तरस्वरूप प्रकृतियों के नाम दो गाथाओं से कहते हैं
देवचउक्काहारदुगजसदेवाउगाण सो पच्छा। मिच्छत्तादावाणं, णराणुथावरचउक्काणं ।।४००॥ पण्णरकसायभयदुगहस्सदुचउजाइपुरिसवेदाणं।
सममेक्कत्तीसाणं, सेसिगिसीदाण पुव्वं तु ॥४०१।। जुम्म ।। __ अर्थ- देवगतिचतुष्क, आहारकद्विक, अयशस्कीर्ति और देवायु इन आठ प्रकृतियों की बन्धव्युच्छित्ति, उदयव्युच्छित्ति के पश्चात् होती है। मिथ्यात्व, आतप, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, स्थावरादि चार, सज्वलन लोभ बिना १५ कषाय, भय-जुगुप्सा, हास्यरति, एकेन्द्रियादि चार जाति और पुरुषवेद इन ३१ प्रकृतियों की बन्ध-उदयव्युच्छित्ति युगपत् होती है। शेष ज्ञानावरणादि ८१ प्रकृति की बन्धव्युच्छित्ति उदयव्युच्छित्ति से पूर्व होती है।
विशेषार्थ- प्रश्न १. जिनकी बन्धव्युच्छित्ति से पहले उदयव्युच्छित्ति होती है वे प्रकृति कौनकौनसी हैं? उत्तर- देवगति, देवगत्यानुपूर्वी, वैक्रियिकशरीर-वैक्रियिकअनोपाङ्ग, आहारकशरीर-आहारक अङ्गोपाङ्ग, अयशस्कीर्ति और देवायु इन आठ प्रकृतियों की बन्धव्युच्छित्ति से पहले उदयव्युच्छित्ति होती है। प्रश्न २. जिन प्रकृतियों की उदयव्युच्छित्ति से पहले बन्धव्युच्छित्ति होती है वे प्रकृतियाँ कौन
१. ध. पु.८ पृ.१००। २. क. प्र. पृ. १४-१५॥