Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-४५३
क्योंकि वहाँ इनका बन्ध देखा जाता है। आगे अप्रमत्तसंयतगुणस्थान के अंतिम समय तक उनका विध्यातसंक्रम होता है। ऊपर अपूर्वकरणगुणस्थान के प्रथम समय से अंतिमकाण्डक की द्विचरमफालि तक उनका गुणसंक्रमण होता है। इसका कारण सुगम है। अन्तिम फालि का सर्वसक्रम होता है, क्योंकि वह अन्य प्रकृति में प्रक्षिप्त होकर नष्ट होती है। प्रत्याख्यानावरणचतुष्क की प्ररूपणा अप्रत्याख्यानावरणचतुष्क के समान है। विशेष इतना है कि देशसंयतगुणस्थान तक इनका अधःप्रवृत्तसंक्रम होता है।
अरति और शोक का मिथ्यात्व से प्रभत्तसंयत गुणस्थानपर्यन्त अधःप्रवृत्तसंक्रम होता है, क्योंकि उनमें इनका बन्ध पाया जाता है। अप्रमत्तसंयतगुणस्थान में इनका विध्यातसक्रम होता है, क्योंकि वहाँ इनका बन्ध नहीं है। अपूर्वकरणगुणस्थान के प्रथम समय से लेकर अपने अन्तिम स्थितिकाण्डक की द्विधरमफालि तक उनका गुणसंक्रम होता है, क्योंकि वहाँ अप्रशस्तता होने पर उनका बन्ध नहीं होता। उनकी अंतिमफालि का सर्वसंक्रम होता है। इसका कारण सुगम है।
निद्रा, प्रचला तथा अप्रशस्तवर्ण-गन्ध-रस व स्पर्श और उपधात के अधःप्रवृत्तसंक्रम और गुणसंक्रम ये दो ही संक्रम होते हैं। यथा-निद्रा और प्रचला का मिथ्यात्व से अपूर्वकरणगुणस्थान के प्रथम सप्तमभाग तक अक्ष पवृत्तसंक्रम होता है, क्योंकि यहाँ इनका बध पाया जाता है। आगे सूक्ष्मसाम्परायिक के अंतिम समय तक उनका गुणसंक्रम होता है, क्योंकि यहाँ उनका बन्ध नहीं है।
अप्रशस्तवर्णादिचतुष्क मिथ्यात्व से अपूर्वकरणगुणस्थान के सात भागों में से छठे भाग तक इनका अधःप्रवृत्तसंक्रम होता है। आगे सूक्ष्मसाम्परायिक के अन्तिम समय तक उनका गुणसंक्रम होता है। इसके आगे उनका संक्रम नहीं है, क्योंकि बन्ध के न होने से उनकी प्रतिग्रह प्रकृतियों का वहाँ अभाव
उपघात की प्ररूपणा वर्णचतुष्क के समान है। इन निद्रा आदि सात प्रकृतियों का विध्यातसंक्रम नहीं होता, क्योंकि क्षपक और उपशमक श्रेणियों में इनकी बन्धन्युच्छित्ति होती है। इनका उद्वेलनसंक्रम भी नहीं होता, क्योंकि अन्य प्रकृतियों में प्रक्षिप्त होकर उनका विनाश नहीं होता।
असातावेदनीय, पाँच संस्थान, पाँच संहनन, अप्रशस्तविहायोगति, अपर्याप्त, अस्थिर, अशुभ, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय, अयशस्कीर्ति और नीचगोत्र इन २० प्रकृतियों के अधःप्रवृत्तसंक्रम, विध्यातसंक्रम
और गुणसंक्रम ये तीन संक्रम होते हैं। यथा-असातावेदनीय, अस्थिर और अशुभ इनका मिथ्यात्व से प्रमत्तसंयतगुणस्थान तक अध:प्रवृत्तसंक्रम होता है, क्योंकि यहाँ इनका बन्ध पाया जाता है। अप्रमत्तसंयत्तगुणस्थान में उनका विध्यातसंक्रम होता है, क्योंकि प्रतिग्रह प्रकृतियों का अभाव है।
हुण्डकसंस्थान और असम्प्राप्तासृपाटिका संहनन का मिथ्यात्वगुणस्थान में अधःप्रवृत्त संक्रम