Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-३८२ आगे उपशम श्रेणी के चार गुणस्थानों में सत्त्वस्थान और भंग कहने की इच्छा से आचार्य सर्वप्रथम अपूर्वकरण गुणस्थान में स्थान और 'मग कहते हैं
दुगछक्कतिण्णिवग्गेणूणापुव्वस्स चउपडि किच्चा।
णभमिगिचउपणहीणं बद्धस्सियरस्स एगूणं ।।३८३ ।। अर्थ-- उपशम श्रेणी के अपूर्वकरण गुणस्थान में दो-छह, तीन का वर्ग (३४३) अर्थात् ९ प्रकृति से हीन तीन स्थान जानना । उन स्थानों की ४ पंक्ति करके क्रम से शून्य १-४ और ५ प्रकृति कम करें तो बद्धायुष्क के स्थान होते हैं और इतर अर्थात् अबद्धायुष्क के स्थानों में बद्धायुष्क के स्थानों में से भी एक-एक प्रकृति कम करना चाहिए। इसप्रकार २४ स्थान हुए।
___ विशेषार्थ- उपशमक अपूर्वकरण गुणस्थान में २-६ व ९ प्रकृतियों से रहित तीन स्नान हैं और इनकी चार पंक्ति करना। प्रथम पंक्ति में शून्य, द्वितीय पंक्ति में तीर्थंकर प्रकृति कम करना, तृतीय पंक्ति में आहारकचतुष्क घटाना, चतुर्थपंक्ति में तीर्थंकर व आहारकचतुष्क, इन पाँच प्रकृतियों को कम करना । इस प्रकार बद्धायुष्क के १२ स्थान हुए तथा अबद्धायुष्क की चारों पंक्तियों में सर्वस्थानों में अपने-अपने नीचे एक-एक बध्यमानदेवायु घटाने पर १२ स्थान होते हैं। इस प्रकार आठ पंक्तियों में तीन-तीन स्थान होने से सर्व २४ स्थान होते हैं। अब जो प्रकृतियाँ घटाईं उनके नाम तथा सत्त्वस्थानों के भंग कहते हैं
णिरियतिरियाउ दोण्णिवि पढमकसायाणि दंसणतियाणि।
हीणा एदे णेया भंगे एक्केवगा होति ।।३८४ ।। अर्थ- नरक और तिर्यञ्च ये दोनों आयु, प्रथम (अनन्तानुबन्धी) चार कषाय इस प्रकार ६ तथा ६ तो ये और ३ दर्शनमोहनीय ऐसी सर्व ९ प्रकृति सो इन प्रकृतियों से हीन ३ स्थान जानने। इनके भंग एक-एक ही होते हैं।
विशेषार्थ- नरक व तिर्यञ्चायु, ये दो प्रकृति घटाने पर १४६ प्रकृति रूप प्रथम स्थान है। नरक-तिर्यञ्चायु और अनन्तानुबन्धी चतुष्क इन छह प्रकृति बिना १४२ प्रकृतिरूप द्वितीय सत्त्वस्थान है। पूर्वोक्त ६ और ३ दर्शनमोहनीयकी इन ९ प्रकृति के बिना १३९ प्रकृतिरूप तृतीय स्थान है। इन तीनों स्थानों की चार पंक्ति करना, यहाँ प्रथम पंक्ति में तो एक भी प्रकृति कम नहीं होगी, द्वितीय पंक्ति में एक तीर्थकरप्रकृति कम करके तीनस्थान जानने । तृतीयपंक्ति में आहारकचतुष्करूप चार-चार प्रकृति कमकरके तीनस्थान जानना। चतुर्थपंक्ति में आहारकचतुष्क और तीर्थङ्कर ये ५-५ प्रकृति कम करके तीन स्थान जानने। इस प्रकार ये १२ स्थान बद्धायुष्क की अपेक्षा से हैं। इन्हीं स्थानों की प्रकृतियों में से