Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-३७५
| ५ भंग भी बद्धायुष्कके छठेस्थानवत् ही | यहाँ जानने।
असंयत
१४०
अबद्धायुष्क की अपेक्षा
| १४० (अबद्धायुष्ककी अपेक्षा छठेस्थानमें
कथित १४४ प्रकृतिमें से
अनन्तानुबन्धीकषायचतुष्क कम की) भुज्यमान चारोंआयुकी अपेक्षाही यहाँ भी
सप्तम स्थान
चार भङ्ग है।
असंयत
३
बद्धायुष्क । की अपेक्षा अष्टम स्थान
। १४० | १४० (बद्धायुष्ककी अपेक्षा सप्तमस्थानमें
कथित १४१ प्रकृतिमें से १ मिथ्यात्व
प्रकृति कम की) ३ भङ्ग इस प्रकार हैं - १. भुज्यमानमनुष्यायु-बध्यमाननरकायु । २. भुज्यमानमनुष्यायु-बध्यमानतिर्यञ्चायु । ३. भुज्यमानमनुष्यायु-बध्यमानमनुष्यायु । ४. भुज्यमानमनुष्यायु-मध्यमानदेवायु । ___ उपर्युक्त ४ भङ्गों में से तीसराभङ्ग | भुज्यभानमनुष्यायु-बध्यमानमनुष्यायुरूप है और | वह पुनरुक्त होनेसे उसके बिना शेष तीन-भग | यहां जानना चाहिए। यहां पुनरुक्तता का कारण यह है कि भुज्यमान-बध्यमान ये दोनोंही मनुष्यायु हैं।
असंयत
अबद्धायुष्क की अपेक्षा अष्टम स्थान
१३९ (अबद्धायुष्कके सातवेंस्थानमें कथित
१४० प्रकृतिमें से मिथ्यात्वप्रकृति कम करने से १३९ प्रकृति हैं) ५ भंग, भुज्यभानमनुष्यायुसम्बन्धी।
असंयत
३
। १३१
बद्धायुष्क । की अपेक्षा नवम स्थान
(बद्धायुष्कके आठवेंस्थानमें कथित १४०
प्रकृतिमें से सम्यग्मिध्यात्वप्रकृति कम की)