Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-३७६
१. भुज्यमानमनुष्यायु-बध्यमाननरकायु । २. भुज्यमानमनुष्यायु-बध्यमानतिर्यञ्च । ३. भुज्यमानमनुष्यायु-बध्यमानमनुष्य। ४. भुज्यमानमनुष्यायु-बध्यमानदेवायु ।
उपर्युक्त ४ भोंमें तीसराभंग पुनरुक्त है क्योंकि वहाँ भुज्यमान-बध्यमान दोनों ही मनुष्यायु हैं अतः उस भंगके बिना शेष ३ भंगोंको ही यहाँ ग्रहण किया है।
असंयत
अबद्धायुष्क | ४ । १३८ । अबद्धायुष्ककी अपेक्षा आठवें स्थान की अपेक्षा | मार्ग til:.. warकरिताकिसिमको सम्यग्मिथ्यात्व' नवम स्थान
प्रकृति कम करनेपर १३८ प्रकृति रहीं। फिर कृतकृत्यवेदकसम्यग्दृष्टि हो गया।
४ भंग, भुज्यमान चारों आयु की अपेक्षा कहे हैं, क्योंकि पूर्वबद्धायु की अपेक्षा ऐसा जीव मरणकर चारों गतियों में उत्पन्न हो सकता
असंयत
४
।
१३८
बद्धायुष्क की अपेक्षा दशम स्थान
बद्धायुष्कके ९वें स्थानमें कथित १३९ प्रकृतियों में से १ सम्यक्त्वप्रकृति कम करनेसे १३८ प्रकृति का सत्त्व है।
यहां ४ भन्न इस प्रकार हैं - १. भुज्यमानमनुष्यायु-बध्यमाननरकायु । २. भुज्यमानमनुष्यायु-बध्यमारतियञ्चायु । ३. भुज्यमानमनुष्यायु-बध्यमानदेवायु | ४. भुज्यमानतिर्यञ्चायु-बध्यमानदेवायु ।
असंयत
अबद्धायुष्क की अपेक्षा | दशम स्थान
४
। १३७
अबद्धायुष्कसम्बन्धी ९वें स्थानमें कधित १३८ प्रकृतियों में से सम्यक्त्वप्रकृति कम करने पर १३७ प्रकृतिका सत्त्व है। ४ भंग, भुज्यमान | चारों आयुकी अपक्षासे हैं।