Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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असंयत
असंयत
असंयत
बद्धायुष्क की अपेक्षा
षष्ठ स्थान
अबद्धायुष्क की अपेक्षा
षष्ठ स्थान
बद्धायुक की अपेक्षा
सप्तम स्थान
गोम्मटसार कर्मकाण्ड - ३७४
५
४
१४५
१४४
१४१
यदि तीसरे भवमें मोक्ष जाने वाला हो तो देवायुका बन्धकर देवगतिमें जाता है वहाँ पर इसके १३८ प्रकृतिकी सत्ता रहती है। वहाँ से मरणकर मनुष्यगतिमें आता है, वहाँ से मोक्ष जाता है। इस जीव के पाँचों कल्याणक होते हैं। यदि इस मनुष्यने पहले नरकायुका बन्ध किया हो तो नरकमें जावेगा, वहाँ इसके १३८ प्रकृतिकी सत्ता रहेगी। वहाँ से मरणकर मनुष्यभवमें आकर पञ्चकल्याणक होंगे और नरक से मनुष्यपर्यायमें आकर तीर्थकर होने वाले जीव के नरकसे निकलने के ६ माह पहिलेसे ही उपसर्ग नहीं होता। नरक व देवगति से मनुष्यभवमें आने वाले जीव के १३८ प्रकृतिकी सत्ता होती है, किन्तु आयुके ६ माह अवशेष रहने पर मनुष्यायु का बन्ध हुआ अतः बध्यमान आयुके बढ़ने से १३९ प्रकृतिकी सत्ता हो जाती है।
१४५ ( १४८-३, भुज्यमान- बध्यमान आयु
बिना २ आयु और तीर्थंकर) मिथ्यात्वगुणस्थानमें १४५ प्रकृति की सत्तावाले बद्धायुष्ककी अपेक्षा द्वितीयस्थानमें १२ भंगों में से २ पुनरुक्त और ५ समभवबिना शेष ५ भन कहे थे उसीके समान यहाँ भी ५ भ जानना ।
१४४ (१४८ - ४, भुज्यमान आयुबिना शेष ३ आयु, तीर्थकर )
भुज्यमान चारों आयु की अपेक्षा ही चार भंग कहे हैं।
१४१ ( बद्धायुष्ककी अपेक्षा छठे स्थान में कथित १४५ प्रकृतिमेंसे अनन्तानुबन्धी कवायचतुष्क कम की)