Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
View full book text
________________
असंयत्त
असंयत
असंयत
असंयत
असंयत
मार्गदर्शक
बद्धायुष्क की अपेक्षा
द्वितीय स्थान
अबद्धायुष्क की अपेक्षा
द्वितीय स्थान
बद्धायुष्क की अपेक्षा
तृतीय स्थान
अवद्धायुष्क की अपेक्षा
तृतीय स्थान
बद्धायुष्क की अपेक्षा चतुर्थ स्थान
आचार्य श्री सुरिहारा गोम्मटसार कर्मकाण्ड-३७२
२
३
१
२
१४२
१४१
१४१
१४०
१४०
१४२ (१४८-६ तिर्यञ्चायु, अन्य कोई आयु, अनन्तानुबन्धीकषायचतुष्क)
२ भ इस प्रकार हैं -
-
१. भुज्यमानमनुष्यायु- बध्यमाननरकायु । २. भुज्यमानमनुष्यायु- बध्यमानदेवायु 1
अथवा
१. भुज्यमानदेवायु- बध्यमानमनुष्यायु । २. भुज्यमाननरकायु- बध्यमानमनुष्यायु ।
१४१
( उपर्युक्त १४२-१, बध्यमान आयु) ३ भङ्ग इस प्रकार हैं -
१. भुज्यमाननरकायु, २. भुज्यमानदेवायु, ३. भुज्यमानमनुष्यायु
१४१ ( बद्धायुष्क सम्बन्धी द्वितीयस्थान में कथित १४२ - १ मिथ्यात्व )
२ भन बद्धायुष्ककी अपेक्षा द्वितीयस्थानके अनुसार जानना । इसमें भुज्यमान-मनुष्यायु है।
१४० (उपर्युक्त १४१-१ भुज्यमानमनुष्यायु,
क्योंकि मनुष्य ही क्षायिकसम्यक्त्वका प्रारम्भ करने वाला होता है कारण कि इस क्षायिक सम्यक्त्वका प्रारम्भ मनुष्यगतिमें ही होता है। अतः एक ही भट्ट होता है ।)
१४० ( बद्धायुष्ककी अपेक्षा तृतीयस्थानमें कथित १४१ प्रकृतियों में से सम्यग्मिथ्यात्वप्रकृति कम की)
२ भन, बद्धायुष्ककी अपेक्षा द्वितीयस्थान के अनुसार यहाँ भी जानना ।