Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गुणस्थान
असंयत
असंयत
गोम्मटसार कर्मकाण्ड - ३७१
असंयतगुणस्थानसम्बन्धी सत्त्वस्थान व भङ्गसम्बन्धी विस्तृतसन्दृष्टि -
सत्त्व
स्थान
बद्धायुष्क की
अपेक्षा
प्रथम स्थान
अबद्धायुष्क की अपेक्षा प्रथम स्थान
भंग
संख्या
२
३
प्रकृति
संख्या
१४६
१४५
विशेष विवरण
१४६ (१४८ - २, तिर्यञ्चायु व एक अन्य
2
आयु) १४६ प्रकृतिकी सत्तावाले जीवों के चार भन्न हैं
१. भुज्यमानमनुष्यायु-बध्यमाननरकायु २. भुज्यमानमनुष्यायु- बध्यमानदेवायु ३. भुज्यमाननरकायु-बध्यमानमनुष्यायु' ४. भुज्यमानदेवायु- बध्यमानमनुष्यायु
इन चारभनों में से १ व तीसरे भंगमें आयु ( नरकायु- मनुष्यायु) समान है, तथा २ व ४ भंग में आयु (मनुष्य देवायु) समान है, इसलिये दोभंग कमकरके २ ही भंग ग्रहण किये हैं।
१४५ ( उपर्युक्त १४६ प्रकृति में से
बध्यमान आयु कम करने से १४५ प्रकृति रहीं), क्योंकि यहाँ आयुबन्ध हुआ ही नहीं, अबद्धायुष्क है। यहाँ ३ भङ्ग इस प्रकार हैं
१.
२.
३.
भुज्यमाननरकायु
भुज्यमानमनुष्यायु भुज्यमानदेवायु