Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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असंयत
| अबद्धायुष्क |
की अपेक्षा चतुर्थ स्थान
गोम्मटसार कर्मकाण्ड-३७३ ...
. ३ । १३९ | १३९ (उपर्युक्त १४० प्रकृतिमें से बध्यमान
आयु कम की)
३ भङ्ग इस प्रकार हैं - १. भुज्यमाननरकायु, २. भुज्यमानधनुष्यायु ३. भुज्यमानदेवायु
क्षायिकसम्यक्त्व को जिस मनुष्यने प्रारंभ | किया हो ऐसा कृतकृत्यवेदकसम्यग्दृष्टिजीव देव
अथवा नरकगतिमें गया इस अपेक्षा से भुज्यमान | ३ आयु होती हैं। अतः भंग तीन हैं।
असंयत
| १३९
बद्धायुष्क की अपेक्षा पञ्चम स्थान
१३९ (बद्धायुष्ककी अपेक्षा चतुर्थस्थानमें
कथित १४० प्रकृतिमें से १ सम्यक्त्व
प्रकृति कमकी) २ भंग, बद्धायुष्ककी अपेक्षा द्वितीयस्थान के समान जानना।
असंयत
अबद्धायुष्क की अपेक्षा पज्ज्चम स्थान
उपर्युक्त १३९ प्रकृति में १ मध्यमानआयु कम करने पर १३८ प्रकृति शेष रहीं।
यहाँ ३ भंग हैं, वे इस प्रकार हैं - १. भुज्यमानमनुष्यायु २. भुज्यमानदेवायु ३. भुज्यमाननरकायु। ___ तीर्थङ्करप्रकृति सहित क्षायिकसभ्यग्दृष्टिजीव के १३५, प्रकृतिकी सत्तावाला यह स्थान होता है। इस सत्त्वस्थानवाले जीवके यदि भुज्यमानायु मनुष्य हो और वह | क्षायिकसम्यक्त्वसहित तीर्थङ्करप्रकृतिका बन्ध
कर चुका है तो उसी भव से मोक्ष जाता है एवं उसके तप-ज्ञान-निर्वाण ये तीन ही कल्याणक होते हैं।