Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-३६१ मिश्रगुणस्थान में बद्धायुष्क की अपेक्षा चारों स्थानों में पूर्वोक्तप्रकार १२ भङ्ग में से पुनरुक्त और समभङ्गबिना पाँच-पाँच भङ्ग जानने। अबद्धायुष्क के चारों स्थानों में भुज्यमान चारआयु की अपेक्षा चार-चार भङ्ग जानना।
शंका - मिश्रगुणस्थान में अनन्तानुबन्धी का सत्त्व क्यों नहीं पाया जाता है?
समाधान - असंयतादि चारगुणस्थानोंमें से कहीं पर तीनकरण करके अनन्तानुबन्धीकषाय का विसंयोजन किया और मिश्रमोहनीय (सम्यग्मिथ्यात्व) के उदय से मिश्रगुणस्थानवर्ती हुआ उसके अनन्तानुबन्धीका सत्त्व नहीं पाया जाता।
शंका - सम्यग्मिध्यात्वनामक तृतीयगुणस्थान में जीव चारित्रमोहनीय को अनन्तानुबन्धीरूप से क्यों नहीं पारणंभा लेता ....
समाधान - क्योंकि मित्रगुणस्थानमें चारित्रमोहनीयको अनन्तानुबन्धीरूपसे परिणमाने के कारणभूत मिथ्यात्व का उदय नहीं पाया जाता है अथवा सासादनगुणस्थान में जिसप्रकार के तीव्रसंक्लेशरूप परिणाम पाये जाते हैं, मिश्रगुणस्थान में उसप्रकार के तीव्रसंक्लेशरूप परिणाम नहीं पाये जाते, अत; सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव चारित्रमोह को अनन्तानुबन्धीरूप से नहीं परिणमाता है।'
१. जयधवल पु.२ पृ.२१९॥