Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड - ३६६
अण्णदरआउसहिया, तिरियाऊ ते च तह य अणसहिया । मिच्छं मिस्सं सम्मं, कमेण खविदे हवे ठाणा ॥ ३७८ ॥
आदिमपंचट्ठाणे, दुगदुगभंगा हवंति बद्धस्स । इयरस्सवि णादव्वा, तिगतिगइगि तिण्णितिण्णेव ।। ३७९ ।।
मणुवणिरयाउगे णरसुर आऊ णिरागबंधम्मि । तिरियाऊणा तिगिदरे मिच्छ्व्वणम्मि भुज्जमणुसाऊ ||३७९क ||
बिदियस्सवि पणठाणे, पण पण तिग तिण्ण चारि बद्धस्स । इयरस्स होंति शेया, चउचउड़गिचारि चत्तारि ।। ३८० ।।
पुव्वुत्तपणपणाउग, भंगा बंधस्स भुजमणुसाऊ । अण्णतियाऊसहिया, तिगतिग चउणिरयतिरियाऊण ॥ ३८०क ॥
आदिल्लदससु सरिसा, भंगेण य तिदियदसयठाणाणि । बिसि चउत्थस् य, दसठाणाणि य सभा होंति ।। ३८१ ।।
अर्थ- दो, छह, सात, आठ, नौ प्रकृतियों से रहित पाँचस्थान बराबर लिखने तथा इसी प्रकार पाँच-पाँच स्थानकी चार पंक्ति नीचे-नीचे लिखना । इनमें प्रथमपंक्ति के पाँचस्थानों में तो शून्य घटाना अर्थात् वे पाँचोंस्थान जैसे थे वैसे ही २,६,७,८ और ९ प्रकृतिरहित जानना तथा द्वितीयपंक्ति में एकएक प्रकृति और घटाने से वे पाँचों स्थान सर्वप्रकृतियों में से ३, ७, ८, ९ और १० प्रकृतिरहित जानने । तृतीय पंक्ति में चार-चार प्रकृति घटाना । वे पाँचोंस्थान ६, १०, ११, १२, १३ प्रकति-रहित जानना । चतुर्थक्तिमें पाँच-पाँच प्रकृति घटाना, वे पाँचोंस्थान ७, ११, १२, १३, १४ प्रकृति - रहित जानना ।
बद्धायुष्क व अबद्धायुष्क की प्रथम दो पंक्तियों के जो पाँच-पाँच स्थान वे तीर्थंकरप्रकृति सहित और तीर्थंकरप्रकृति रहित जानने इसलिये द्वितीयपंक्ति में एक-एक प्रकृति घटाई । बद्धायुष्क और अबद्धायुष्क की तीसरी दो पंक्तियों के जो पाँच-पाँच स्थान हैं वे आहारकशरीर - आहारक अनोपाद, आहारकबन्धन, आहारकसङ्गातरहित जानने अतः तीसरीपंक्ति में चार-चार प्रकृति घटाई । बद्धायुष्क और अबद्धायुष्ककी चौथी दो पंक्तियों के जो पाँच-पाँच स्थान हैं वे आहारकचतुष्क और तीर्थङ्कररहित जानना इसलिए चतुर्थपंक्ति में पाँच-पाँच प्रकृति घटाई इस प्रकार चारपंक्तिरूप स्थान जानने ।। ३७७ ||