Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-३६७
तिर्यञ्चायु और एक कोई अन्य आयु ये दो प्रकृति, तथा दो तो ये और अनन्तानुबन्धीचतुष्क ये ६, इन्हीं ६ में मिथ्यात्वप्रकृति मिलाने से ७, पुन: सम्यग्मिध्यात्वप्रकृति मिलाने से ८ और इन्हीं में सम्यक्त्वप्रकृति मिलाने से ९ प्रकृति जानना ||३७८ ।।
प्रथम पंक्ति के बद्धायुष्कसम्बन्धी पाँचस्थानों में दो-दो भङ्ग होने से १० भङ्ग हैं। इसके आगे अबद्धायुष्कसम्बन्धी पाँचस्थानों में तिर्यंचायुबिना क्रमसे ३-३-१-३-३ भङ्ग हैं । इसप्रकार अबद्धायुष्क के १३ भज हैं॥३७९ ॥
तीर्थङ्करप्रकृति की सत्तावाल जीव के बद्धायुष्कापेक्षा अपुनरुक्तभग दो होते हैं। (१) मनुष्यायुमरकायु (२) मनुष्यायु-देवायु। अबद्धायुष्क जीव के तिर्यंचायु को छोड़कर अन्य तीन भुज्यमान-आयु की अपेक्षा तीनभंग होते हैं, किन्तु क्षायिक सम्यक्त्व के सम्मुख जीव के, जिसने मिथ्यात्वप्रकृति का क्षय कर दिया है, भुज्यमान मनुष्यायु का एक ही भंग होगा, क्योंकि दर्शनमोह की क्षपणा मनुष्य ही करता है ।।३७९क ।।
द्वितीयपंक्तिसम्बन्धी बद्धायुष्क के पाँचस्थानों में क्रम से ५-५-३-३ और ४ भंग हैं। अत: ये सर्व २० भंग हैं तथा अबद्धायुष्क के ५ स्थानों में अनुक्रम से ४-४-१-४ और ४ भंग हैं। अत: ये सर्व ५७ भंग हैं।।३८०॥
गाथा ३८० में जो द्वितीयपंक्ति के प्रथम व द्वितीयस्थान में आयु के पाँच-पाँच भंग बतलाए गए हैं, उनका कथन पूर्व में कही गई गाथा ३६४ ख के अनुसार जानना । तृतीय व चतुर्थस्थानमें आयुके जो तीन-तीनभंग कहे हैं, उनमें भुज्यमान तो मनुष्यआयु है और बद्ध्यमान शेष तीन आयु (नरक-देवतिर्यंच) की अपेक्षा तीनभंग होते हैं। (दर्शनमोहकी क्षपणा मनुष्य ही करता है अत: भुज्यमान मनुष्यायु ही होती है, अन्य आयु भुज्यमान नहीं हो सकती, क्योंकि अन्यगतियों में मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्वप्रकृति का क्षय संभव नहीं है।) पाँचवेंस्थान में जो ४ भंग कहे हैं वे पूर्वोक्त पाँच भंगोंमें से नरकायु-तिर्यंचायु रूप १ भंग कम करके शेष चारभंग जानना। (क्योंकि क्षायिकसम्यग्दृष्टि नारकी तिर्यंचायु का बन्ध नहीं कर सकता, मात्र मनुष्यायु का ही बंध करेगा। क्षायिकसम्यग्दृष्टितिर्यंच के भी नरकायु का बन्ध संभव नहीं है, उसके देवगति का ही बन्ध होगा।)
प्रथमपंक्तिसम्बन्धी बद्धायुष्क व अबद्धायुष्क के ५-५ स्थानों की अपेक्षा १० स्थान हैं उनमें जो भंग हैं उसीके समान तृतीयपंक्ति के १० स्थानोंमें भी भंग जानना ।।३८१ ।।
_तृतीयपंक्ति में प्रथमपंक्ति के समान बद्धायुष्क के १० व अबद्धायुष्क के १३ भंग हैं। द्वितीय तथा चतुर्थपंक्तिसम्बन्धी दशस्थानों के भंग समान हैं।
विशेषार्थ - बद्धायुष्क असंयतसम्यग्दृष्टि के प्रथमपंक्तिप्सम्बन्धी जो पाँचस्थान हैं वे