Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
View full book text
________________
गोम्मटसार कर्मकाण्ड-३६४
मिश्र बद्धायुष्क की| १ न. ति. | १४१
| अपेक्षा | १ न. म. unfan द्वितीय स्थान hिair at
१ ति.दे. १ म, दे.
१४१ (१४८-७, भुज्यमान-बध्यमानआयु
बिना दो आयु, तीर्धकर और KE
अनन्तानुबन्धीकषायचतुष्क) असंयतादि चारगुणस्थानों में से किसी भी गुणस्थानमें तीनकरण के द्वारा अनन्तानुबन्धी कषायचतुष्क की विसंयोजना जिसने की हो तथा दर्शनमोहनीयका क्षय करनेके सम्मुख न हो वह जीव संक्लिष्टपरिणामोंसे सभ्यग्मिथ्यात्वके उदयसे मिश्रगुणस्धानमें आता है तथा १४१ प्रकृति की सत्तावाला होता है।
इस स्थान में मिथ्यात्वगुणस्थान में नद्धायुष्क की अपेक्षा कथित द्वितीयस्थान के समान १२ भंग होते हैं किन्तु दो पुनरुक्त और ५ समान भंगों को छोड़कर ५ ही भंग ग्रहण किये हैं।
मिश्र
१४०
अबद्धायुष्क की अपेक्षा द्वितीय स्थान
ति।
१४० (बद्धायुष्क की अपेक्षा द्वितीयस्थान में
कथित १४१ प्रकृतिमें से बध्यमानआयु कम करने से १४० प्रकृतिकी सत्ता रहती है) ४ भंग, भुज्यमानचारों आयुकी अपेक्षा
मिश्न
बद्धायुष्क / १ न, ति. | की अपेक्षा | १ न. म. तृतीय स्थान | १ ति. म.
१ति, दे,
१४१ | १४१ (१४८-७, भुज्यमान-बध्यमानआयु
बिना दो आयु, तीर्थङ्कर, आहारक
चतुष्क) चारों ही गतिके जीव इस गुणस्थानमें आ सकते हैं। मिथ्यात्वगुणस्थान के बद्धायुष्क की अपेक्षा कधित द्वितीयस्थान में जो १२ भंग कहे गये हैं उसी प्रकार यहाँ भी १२ भंग जानना, किन्तु पूर्वानुसार यहाँ भी दो पुनरुक्त और ५ समान भंगों को कमकरके शेष ५ भंग ही ग्रहण किये गये हैं।