Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड - ३६०
अबद्धायुष्क की अपेक्षा दो सत्त्वस्थानों में ४ और २ भङ्ग हैं। इसप्रकार चारस्थानसम्बन्धी १२ भङ्ग जानना । मिश्रगुणस्थानसम्बन्धी बद्धायुष्क की अपेक्षा चारस्थानों में पाँच-पाँच भंग एवं अबद्धायुष्क की अपेक्षा चारस्थानों के चार-चार भन होनेसे यहाँ आठस्थानों के ३६ भंग हुए ।
बंधंदेवागुवसमसद्दिकी बंधिऊण आहारं ।
सो चेव सासणे जादो तरिसं पुण बंध एक्कोदु ।। ३७५क ।।
fote कार्य की पुhिeart m
तस्सेव य बंधाउगठाणे भंगा दु भुज्जमाणम्मि । मणुवाउगम्मिएको देवेसु ववणगे विदियो || ३७५ख ॥
अर्थ - देवायु का बन्ध करके उपशमसम्यक्त्व को प्राप्त होकर (सप्तमगुणस्थान में ) आहारक का बन्ध करके सासादनगुणस्थान में जाने पर उसके आयुबन्ध की अपेक्षा मनुष्य- देवायुरूप एकही भ होता है ।
उपशमसम्यग्दृष्टि मनुष्य आहारकचतुष्क का बन्ध करके सासादनगुणस्थानको प्राप्त होता है और देवायु का बन्ध करता है तो उसके भुज्यमानआयु की अपेक्षा सासादनगुणस्थान में दो भन्न होते हैं। सासादन गुणस्थान में देवायु के बन्ध से पूर्व 'मनुष्यायु' का एकभन्न । सासादनगुणस्थान में मरणकर देवों में उत्पन्न होने पर 'देवायु' का दूसरा भक्त होता है।
विशेषार्थ - सासादनगुणस्थान में १४१ प्रकृतिरूप बद्धायुष्कापेक्षा सत्त्वस्थान में चारों गति के बद्धायुष्कजीवों की अपेक्षा पूर्वोक्तप्रकार १२ भंग में से समभंग और पुनरुक्तभंगबिना ५ भंग जानना तथा १४० प्रकृतिरूप अबद्धायुष्कस्थान में भुज्यमान चारआयु की अपेक्षा चारभंग जानना । १४५ प्रकृतिरूप बद्धायुष्क में जिसके आहारकचतुष्क का बन्ध हुआ उसमें किसी को सासादनगुणस्थान की प्राप्ति होती है, इस उपदेशकी अपेक्षा एक ही भंग जानना । १४४ प्रकृतिरूप अबद्धायुष्कस्थान में दो भंग हैं। वहाँ भुज्यमान-मनुष्यायुवाला उपशमसम्यग्दृष्टि आहारकचतुष्क का बन्धकरके सासादनगुणस्थानवर्ती हुआ यह भी एकभङ्ग है तथा पहले जिसके देवायु का बन्ध हुआ था ऐसा उपशमसम्यग्दृष्टि आहारकचतुष्क का बन्धकरके सासादनगुणस्थान को प्राप्त हो मरकर देव हुआ, यहाँ भुज्यमानदेवायु का सत्त्व पाया जाता है, यह दूसराभङ्ग है।
शंका - आयुबन्ध के शेष चार भन्ज क्यों नहीं होते?
समाधान - गाथा ३३४ के अनुसार देवायु के अतिरिक्त यदि अन्य आयु का बन्ध हो जावे तो मनुष्य संयम धारण नहीं कर सकता। आहारकशरीर का बंध संयमी मनुष्य सप्तमगुणस्थान में करता है । अतः मनुष्य व देवायुके अतिरिक्त शेष चारभङ्ग सम्भव नहीं हैं।