Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
View full book text
________________
मिथ्यात्व
मिथ्यात्व
मिथ्यात्व
मिथ्यात्व
बद्धायुष्क की
अपेक्षा
नवम स्थान
में कहते हैं -
अबद्धायुष्क की अपेक्षा
नवम स्थान
बद्धायुष्क की अपेक्षा
दशम स्थान
अबद्धायुष्क की अपेक्षा
दशम स्थान
१
गोम्मटसार कर्मकाण्ड - ३५८
१२९
१२९
+
१२७
१२७
उच्चगोत्र की जिसके उद्वेलना हुई है ऐसे तेजकाय वायुकायजीवको यह स्थान होता है।
१२९ (अवद्धायुष्कापेक्षाकथित अष्टमस्थानसम्बन्धी १३० प्रकृतियों में से उच्च गोत्र कम कर दिया )
तेजकाय - वायुकायजीव तिर्यञ्च हैं और तिर्यञ्चायु का ही बन्ध करते हैं अन्य आयु का नहीं |
ऊपरवर्ती तेजकाय वायुकायजीवों के बध्यमानतिर्यञ्चायु का बन्ध नहीं हुआ तो भी १२९ प्रकृति की ही सत्ता रहेगी तथा भंग भी उपर्युक्त ही रहेगा, प्रकृति भी वे ही रहेंगी अतः सत्त्वस्थान और भंग नहीं बदलने से ग्रहण नहीं किया ।
-
तेजकाय - वायुकाय ( अबद्धायुष्कापेक्षा नवमस्थानवाले) जीवों के मनुष्यगति-मनुष्यगत्यानुपूर्वीकी उद्वेलना होने से १२७ प्रकतिकी ही सत्ता रहती है। इस जीव ने तिर्यञ्चायु का बन्ध कर लिया है।
अब सासादन तथा मिश्रगुणस्थान में सत्त्वस्थान और भङ्गोंकी संख्या चार गाथाओं
उपर्युक्त जीव ने तिर्यञ्चायुका पहले बन्ध नहीं किया तथापि १२७ प्रकृतिकी ही सत्ता रहेगी, सत्त्वस्थान और भंगमें भी कोई अन्तर नहीं होने से इसका ग्रहण नहीं किया गया है।
सत्ततिगं आसाणे, मिस्से तिगसत्तसत्तएयारा ।
परिहीण सव्वसत्तं बद्धस्सियरस्स एगूणं ॥ ३७२ ॥