Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-२०१
उपरितन ५ गुणहानियों में से प्रथमगुणहानिसम्बन्धी प्रथमनिषेकके प्रमाण(१२८) में दोगुणहानि (८) का भाग देने पर १२८५८-१६ आए सो यह विशेष (चय) जानना। इस प्रकार प्रत्येक निषेकमें से १६,१६ घटाना तथा आदि (प्रथम) निषेक में से एककम गुणहानिआयामप्रमाण विशेष (चय) घटाने पर अन्तिम निषेक ८० हुआ। आदिनिषेक १२८, मध्यनिषेक ११२ व ९६ और अन्तिमनिषेक ८० हुआ। . १२८+११२+९६+८० इन सभीको जोड़ देनेपर ४१६ हुए सो यह उपरितन प्रथमगुणहानि का सर्वधन जानना सो यवमध्यके प्रमाणको एकअधिक तिगुणे गुणहानिआयामसे गुणा करनेपर एवं गुणहानिआयामका भाग देने पर प्रथमगुणहानिसम्बन्धी द्रव्य जानना । यवमध्यके प्रमाण १२८ को तिगुनीगुणहानि (१२) में एकअधिक (१२+१=१३) से गुणा करने तथा गुणहानिआयाम का भाग देनेपर ४१६ आए, यह प्रथमगुणहानिका द्रव्य है। ऊपर एक-एक गणहानिमें द्रव्य और विशेषका प्रमाण आधा-आधा जानना। एककम नानागुणहानिका जो प्रमाण है उतनी बार २ के अङ्क लिखकर परस्परगुणा करने पर जो प्रमाण हो उसका भाग प्रथमगुणहानिके द्रव्यमें देने पर अन्तिमगुणहानिमें द्रव्यका प्रमाण होता है। उपरितनगुणहानि ५ में से एक कम किया तो ५-१-४ लब्ध आया । अत: ४ बार दो के अङ्क लिखकर (२४२४२४२) परस्परगुणा करनेपर १६ प्राप्त हुआ इसका भाग प्रथमगुणहानिसम्बन्धी द्रव्य ४१६ में देने पर ४१६:१६२६, सो यह अन्तिमगुणहानिका द्रव्य जानना ।
अधस्तनगुणहानि ३ हैं। प्रथमगुणहानिसम्बन्धी यवमध्यके प्रमाणमें से एक विशेष (चय) घटानेपर अधस्तनप्रथमगुणहानिका प्रथमनिषेक प्राप्त होता है। यवमध्य १२८ में से विशेषका प्रमाण १६ घटाने पर १२८-१६-११२ रहा,यह आदिनिषेक जानना तथा इसके एक-एक निषेक में से एक-एक विशेष (चय) घटाते-घटाते आदि निषेक में से एकक्रम गुणहानिआयामप्रमाण विशेष (चय) घटाने पर अन्तिम निषेक ६४ हुआ। मुख ६४,भूमि ११२,इनको जोड़ देनेपर ६४+११२-१७६ हुआ। इसका आधा ८८, इसको पद (४) से गुणा करनेपर ८८४४३५२ यह अधस्तनप्रथमगुणहानिका सर्वद्रव्य है। अर्थात् यवमध्य १२८ को ११ से गुणा करनेपर (१२८x१११४०८) लब्धराशिमें ४ का भाग देनेपर १४०८४-३५२ आया। यवमध्यको दूना करके ४ का भाग देनेपर जो लब्ध आवे उतने प्रमाण उपरितनप्रथमगुणहानिसम्बन्धीद्रव्य में से यहाँ ऋणका प्रमाण जानना। यवमध्य १२८ के दूने २५६ को ४ से भाग दिया तो २५६:४६४ आया, यह ऋणरूपद्रव्य जानना। इस ऋणरूप द्रव्यको उपरितनप्रथमगुणहानिके द्रव्यमें से घटाने पर अधस्तनप्रथमगुणहानिका द्रव्य होता है तथा उपरितनगुणहानिसम्बन्धी निषेक से अधस्तनगुणहानिके निषेकमें उपरितनगुणहानिके चयका प्रमाण ऋणरूप जानना। जैसे- उपरितनगुणहानिका प्रथमनिषेक १२८ है यहाँ वयका प्रमाण १६ घटाने पर अधस्तनगुणहानिके प्रथमनिषेकका प्रमाण (१२८-१६-११२) होता है, इसीप्रकार सर्वत्र जानना । गुणहानि-गुणहानिप्रति द्रव्य आधा-आधा जानना । वहाँ एककम अधस्तनगुणहानिप्रमाण दो के अङ्क का भाग आदि गुणहानिके द्रव्य में देने पर अन्तिमगुणहानि का द्रव्य होता है तथा ऋण भी जो प्रथम