Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-२२३
त्रिकोणयन्त्र का जोड़ देने पर जो प्रमाण हो उतने प्रमाण सत्ता जीव के सदाकाल रहती है। अब जोड़ने का विधान कहते हैं
त्रिकोण यंत्र की चरम गुणहानि में चरम निषेक ९ हैं। उसके नीचे द्विचरम निषेक दो हैं ९, १० । इसी तरह त्रिचरम निषेक तीन हैं ९/१०/११ । इस प्रकार एक-एक अधिक के क्रम से प्रथम निषेक में नाना समयप्रबद्धों से प्रतिबद्ध निषेक गुणहानि प्रमाण होते हैं ९/१०/११/१२/१३/१४/१५/१६ । यहाँ जोड़ने के लिए सबको चरम निषेक ९ के समान करने के लिए नीचे-नीचे के निषेकों में स्थित अन्तिम गुणहानि के पयों को पृथक् करके उसे अपनी भाभी मला विक संख्या के पास में स्थापित करो।
__ अत: अन्तिमगुणहानि का अन्तिमनिषेक ९ लिखकर उसके आगे एक-एक अधिक गुणकार ९, ऐसी एक पंक्ति करनी और दूसरी पंक्ति के अन्त में शून्य लिखना। पश्चात् सङ्कलनरूप प्रमाण लिखना | यहाँ अंतिम गुणहानि की दो पंक्तियाँ इस प्रकार हैं -
९४२
१४६
९४७
१४१५ १४२१ १४२८
९४८
यहाँ ९४१-९ यह प्रथम जोड़ है तथा ९४२१८,१४१-१ इन दोनों को मिलाने से १८+१=१९,सो ९ और १०-१९। ९४३=२७,३४१-३ इन दोनों के मिलने से २७+३=३०, सो ९+१०+११ का जोड़ ३० इसप्रकार जोड़ करने पर अन्त में ९४८-७२ और २८४१-२८ इनको मिलाने से ७२+२८-१००सो अन्तिम गुणहानि के सर्वनिषेकों का योग १०० हुआ।
द्विचरमादि गुणहानि में चरमादि गणहानि का सर्वद्रव्य तो 'आदि' जानना किन्तु दोनों पंक्तियों में पहले से दूना-दूना प्रमाण जानना | द्विचरम गुणहानि की दो पंक्तियाँ इस प्रकार हैं -