Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड - ३३३
क्योंकि तीन अशुभ लेश्याओं में तीर्थङ्कर प्रकृति का बन्ध प्रारम्भ नहीं होता तथा जिसके नरकायु का बन्ध हो गया है वह भी दूसरी-तीसरी पृथ्वी में कापोत लेश्या से ही गमन करता है अतः यहाँ तीर्थप्रकृति का असत्त्व होने से १४७ प्रकृति का सत्त्व है। सासादन आदि गुणस्थानों में रचना गुणस्थानवत् ही जानना ।
कापोतलेश्या में सत्त्वप्रकृति १४८, गुणस्थान आदि के चार । सत्त्वादि का सर्वकथन गुणस्थानोक्त ही जानना । तेज ( पीत) और पद्मलेश्या में सत्त्वप्रकृति १४८ हैं, गुणस्थान मिथ्यात्व से अप्रमत्तपर्यन्त ७ हैं। यहाँ सुहतिश्लेग्सिय बाले जिप तित्शयर सत्तं इस बच्चन से मिथ्यात्वगुणस्थान में तीर्थङ्कर प्रकृति का सत्त्व नहीं है, क्योंकि तीर्थङ्करप्रकृति की सत्तावालाजीव जो कि नरक जाने के सम्मुख है उसके ही सम्यक्त्व की विराधना होती है। तीनों शुभलेश्याओं में सम्यक्त्व की विराधना नहीं होती इसलिए तीर्थङ्करप्रकृति का असत्त्व होने से यहां मिथ्यात्वगुणस्थान में सत्त्व १४७ प्रकृति का है। सासादन आदि गुणस्थानों में सर्वकथन गुणस्थानवत् (गाथा ३४२ की सन्दृष्टिवत्) जानना । शुक्ललेश्या में सत्त्वप्रकृति १४८ हैं, गुणस्थान मिथ्यात्व से सयोगीपर्यन्त १३ । मिथ्यात्वगुणस्थान में तीर्थङ्करप्रकृति का सत्त्व नहीं होने से सत्त्व १४७ प्रकृति का है। शेष सर्वकथन गुणस्थानवत् (गाथा ३४२ की सन्दृष्टि के अनुसार)
जानना ।
भव्यमार्गणा में सत्त्वयोग्य प्रकृति १४८, गुणस्थान १४ हैं। यहां सत्त्वादि सम्बन्धी सर्वकथन गुणस्थानवत् (गाथा ३४२ की सन्दृष्टिवत् ) जानना ।
आगे अभव्यमार्गणा में जो विशेषता है उसे कहते हैं
अभव्वसिद्धे णत्थि हु, सत्तं तित्थयरसम्ममिस्साणं । आहारचउक्कस्सवि, असण्णिजीवे ण तित्थयरं ।। ३५५ ||
अर्थ - अभव्यमार्गणा में तीर्थरप्रकृति, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व आहारकचतुष्क इन ७ प्रकृतियों का सत्त्व नहीं है। असञ्जीजीवों के तीर्थंकरप्रकृति का सत्त्व नहीं है।
विशेषार्थ - अभन्यमार्गणा में तीर्थंकर, सम्यग्मिथ्यात्व सम्यक्त्व, आहारकशरीर, आहारक अङ्गोपाङ्ग, आहारकबन्धन और आहारकसङ्गात इन ७ प्रकृतियों का सत्त्व नहीं होने से सत्त्वयोग्यप्रकृति १४१ हैं और गुणस्थान एक मिथ्यात्व ही है, क्योंकि अभव्यजीव के कभी सम्यग्दर्शन की अभिव्यक्ति नहीं होती है।
सम्यक्त्वमार्गणा में उपशमसम्यक्त्व में सत्त्वप्रकृति १४८, गुणस्थान असंयत से उपशान्तकषायपर्यन्त ८ हैं। यहाँ असंयतगुणस्थान में असत्त्व नहीं है, सत्त्वप्रकृति १४८ १ देशसंयतगुणस्थान