Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-३३२ Prefire,३५७ प्रकृति का अमत्त्व और ५६ प्रकृति की प्रत्व से व्युच्छित्ति । सयोगीगुणस्थान में सत्त्व ८५ प्रकृति
का, असत्त्वप्रकृति ६३, सत्त्व से व्युच्छिन्नप्रकृति शून्य। अयोगीगुणस्थान के द्विचरमसमयतक सत्त्वप्रकृति ८५, असत्त्वप्रकृति ६३, सत्त्व से व्युच्छिन्न प्रकृति ७२ । अयोगीगुणस्थान के चरमसमय में सत्त्वप्रकृति १३, असत्त्वप्रकृति १३५, सत्त्व से व्युच्छिन्न प्रकृति १३ । यथाख्यातसंयम में असत्त्व-सत्त्व-सत्त्वव्युच्छित्ति सम्बन्धी सन्दृष्टि
सत्त्वयोग्यप्रकृति १४६, गुणस्थान ४
| असत्त्व | सत्त्व
| सत्त्व व्यच्छित्ति
गुणस्थान उपशान्तकषाय
। २
उपशान्तकषाय
९
या
१३९ वा
विशेष (उपशमसम्यकचसहित उपशमश्रेण्यापेक्षा) द्वितीयोपशमसम्यक्त्व में अनन्तानुबन्धी की विसंयोजना न मानने वाले मतानुसार १४६ प्रकृति की सत्ता है) (क्षायिक सम्यक्त्वसहित उपशमश्रेण्यापेक्षा) (गाथा ३४२ की सन्दृष्टि अनुसार) (गाथा ३४२ की सन्दृष्टि अनुसार) (गाथा ३४२ की सन्दृष्टि अनुसार)
क्षीणकषाय सयोगकेवली अयोगीद्विचरम
समयपर्यन्त अयोगी के चरम
समय में
१३५
१३
(गाधा ३४२ की सन्दृष्टि अनुसार)
देशसंयम (संयमासंयम) में नरकायुबिना सत्त्चयोग्य प्रकृति १४७ और गुणस्थान एक देशसंयत ही है। असंयम में सत्त्वप्रकृति १४८ और गुणस्थान मिथ्यादृष्टि आदि चार हैं। यहाँ दोनों ही संयमों में सत्त्वादि का सर्वकथन गुणस्थानवत् (गाथा ३४२ की सन्दृष्टि अनुसार) जानना।
दर्शनमार्गणा में चक्षु-अचक्षुदर्शन में सत्वप्रकृति १४८ हैं, गुणस्थान मिथ्यात्व से क्षीणकषायपर्यन्त १२ हैं। यहाँ सर्वकथन गुणस्थानवत् (गाथा ३४२ की सन्दृष्टिवत्) जानना। अवधिदर्शनमें सत्त्वयोग्य प्रकृति १४८, गुणस्थान असंयत से क्षीणकषायगुणस्थानपर्यन्त ९ हैं। यहाँ भी सत्त्वादिसम्बन्धी सर्वकथन गुणस्थानवत् ही जानना। केवलदर्शन में सर्वरचना केवलज्ञानवत् ही जानना।
लेश्यामार्गणा में कृष्ण और नील लेश्या में सत्त्वप्रकृति १४८, गुणस्थान मिथ्यात्वादि चार । यहाँ किण्ह दुगे बामे ण तित्थयरसत्तं इस वचन से मिथ्यात्व गुणस्थान में तीर्थकर प्रकृति का सत्त्व नहीं है,