Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-३४४
अर्थ - मिथ्यात्वगुणस्थानसम्बन्धी सत्त्वस्थानों में कम की गई प्रकृतियाँ क्रम से तिर्वञ्चायु देवायु । भुज्यमान-बध्यमान आयु से रहित कोई भी दोआयु, तीर्थङ्करप्रकृति । देवायु, तिर्यञ्चायु और आहारकचतुष्क। कोई भी दो आयु, तीर्थङ्कर और आहारकचतुष्क। कोई भी दो आयु, तीर्थङ्कर, आहारकचतुष्क, सम्यक्त्वप्रकृति । इन्हीं ८ प्रकृतियों में सम्यग्मिथ्यात्व मिलाने पर ९। इन्हीं ९ प्रकृतियों में देवद्विक मिलाने पर ११ प्रकृति । इन ११ प्रकृतियों में नरकगति-नरकगत्यानुपूर्वी, वैक्रियिकशरीरवैक्रियिकअनोपाङ्ग, वैक्रियिकशरीरबन्धन, वैक्रियिकशरीरसंघात ये ६ प्रकृतियाँ मिलाने पर १७। इन १७ प्रकृतियों में मनुष्यायु और उच्चगोत्र मिलाने पर १९ प्रकृति तथा इन्हीं १९ प्रकृतियों में मनुष्यगतिमनुष्यगत्यानुपूर्वी मिलाने पर २१ प्रकृतियाँ हैं।
विशेषार्थ - यहाँ तिर्यञ्च व देवायु के बिना १४६ प्रकृति की सत्ता से युक्त बद्धायुष्क का एक सत्त्वस्थान है तथा भुज्यमान-बध्यमान आयुबिना दो आयु व तीर्थङ्करप्रकृति रहित १४५ प्रकृति की सत्तायुक्त एक सत्त्वस्थान : देवायु-तिर्यञ्चायु, आहारकचतुष्क, इन ६ प्रकृतिबिना १४२ प्रकृतियुक्त एक सत्त्वस्थान : दी आधु, आहारकचतुष्क, और तीर्थङ्कर इन सात प्रकृतिबिना १४१ प्रकृति से युक्त एक सत्वस्थान है। पूर्वोक्त ७ और एक सम्यक्त्व, इन ८ प्रकृतिबिना १४० प्रकृतियुक्त एक सत्त्वस्थार है। पूर्वोक्त ८ और सम्यग्मिध्यात्व इन ९ प्रकृतिबिना १३९ प्रकृतियुक्त एक सत्त्वस्थान है। पूर्वोक्त ९ और देवगति-देवगत्यानुपूर्वी इन ११ प्रकृतिबिना १३.७ प्रकृतियुक्त एक सत्त्वस्थान है। पूर्वोक्त ११ और नरकगति-नरकगत्यानुपूर्वी, वैक्रियिकशरीर-वैक्रियिक अंगोपांग, वैक्रियिकबन्धन, वैक्रियिकसतात इन १७ प्रकृतियों के बिना १३१ प्रकृतियुक्त एक सत्त्वस्थान है। पूर्वोक्त १७ और मनुष्यायु, उच्चगोत्र इन १९ प्रकृतिबिना १२९ प्रकृतियुक्त एक सत्त्वस्थान है। पूर्वोक्त १९ और मनुष्यगति-मनुष्यगत्यानुपूर्वी इन २१ प्रकृतिबिना १२७ प्रकृतियुक्त एक सत्त्वस्थान है। इस प्रकार ये १० सत्त्वस्थान बद्धायुष्क के जानने चाहिए।
अबद्धायुष्क के भुज्यमानआयु की सत्ता पाई जाती है किन्तु बध्यमान आयु की सत्ता नहीं पाई जाती है अतः पूर्वोक्तसत्त्व से एक-एक बध्यमानआयु से रहित अबद्धायुष्क के १० सत्त्वस्थान जानना । इस प्रकार बद्धायुष्क व अबद्धायुष्कसम्बन्धी (१०+१०)२० सत्त्वस्थानों में यहाँ पर पुनरुक्त दो स्थानों से रहित मिथ्यात्वगुणस्थान के १८ सत्त्वस्थान हैं।
यहाँ पहले जिसके नरकायु का बन्ध हुआ ऐसा मिथ्यादृष्टि मनुष्य वेदकसम्यक्त्व को ग्रहण करके असंयतगुणस्थानवर्ती होकर केवली अथवा श्रुतकेवली के निकट सोलहकारण भावना की आराधना करके तीर्थङ्करप्रकृति का बन्ध प्रारम्भ करता है, इस प्रकार तीर्थकरप्रकृति की सत्तासहित मरण के समय भुज्यमानमनुष्यायु का अन्तर्मुहूर्त काल शेष रहने पर मिथ्यादृष्टि हुआ, उस समय उस जीव के तिर्वञ्चायु और देवायु के सत्त्व का अभाव है अतः १४६ प्रकृतिरूप सत्त्वस्थान पाया जाता है, यहाँ भंग भी एक