Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-३५१
मिथ्यात्वगुणस्थानसम्बन्धी सत्त्वस्थान एवं भंग (बद्धायुष्क-अबद्धायुष्क की अपेक्षा)
की सन्दृष्टि
गुणस्थान
सत्व
|
विशेष विवरण
भंग संख्या
। प्रकृति
संख्या
स्थान
मिथ्यात्व
बद्धायुष्क की
१४६
अपेक्षा
प्रथम स्थान
१४६ (१४८-२ तिर्यञ्च-देवायु) मिथ्यादष्टि मनुष्य के नरकायु की बन्ध करने के पश्चात् वेदक सम्यक्त्व को प्राप्त किया और तीर्थङ्करप्रकृति का भी बन्ध कर लिया। मरण के अन्तर्मुहूर्त पहले मिथ्यात्व गुणस्थान में आया उस समय उसके १४६ प्रकृति की सत्ता होती
नोट : जिस सम्यग्दृष्टि मनुष्य ने मनुष्य व तिर्थञ्चायु बाँध ली हो उसके तीर्थकर - प्रकृति का बन्ध प्रारम्भ नहीं होता है।
४ से ७ गुणस्थानवौं जिस मनुष्य ने देवायु बाँध ली हो वह विथ्यात्व में नहीं आ सकता।
१
| १४५
| १४५ (१४८-३, मनुष्य-तिर्यञ्च-देवायु)
मिथ्यात्त्र | अबद्धायुष्क |
की अपेक्षा प्रथम स्थान
उपर्युक्त प्रकार से तीर्थकर प्रकृतिकी सत्ता सहित द्वितीय व तृतीय नरक का नारकी उत्पन्न होने से तीन अन्तर्मुहूर्त पर्यन्त मिथ्यादृष्टि रहता है, उस समय उसके आगामी आयुका बन्ध नहीं होता, क्योंकि नरक में आयु का बन्ध अन्तिम ६ माह में होता है। अत: बध्यमान आयु की सत्ता कम होने से बद्धायुष्क की अपेक्षा जो १४६ प्रकृति का सत्त्वस्थान कहा उसमें से बध्यमान मनुष्य-आयु घटा देने पर १४५ प्रकृति की सत्तासहित सत्त्वस्थान यहाँ | होता है।