Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-३४५
ही पाया जाता है। जिनके बध्यमानतिर्यञ्च व मनुष्यायु हो और भुज्यमानमनुष्यायु हो उन असंयत्तसम्यग्दृष्टि के तीर्थङ्करप्रकृति के बन्ध का प्रारम्भ नहीं होता । बध्यमानदेवायु एवं भुज्यमानमनुष्यायुसहित असंयतादि चारगुणस्थानवीजीव सम्यक्त्व से भ्रष्ट होकर मिथ्यात्व में नहीं जाते तथा भुज्यमाननरकायु बध्यमानमनुष्यायु इस प्रकार का एक भंग नरकायु के ६ माह शेष रहने पर होता है वहाँ मिथ्यात्वपना नहीं होता अतः भुज्यमानमनुष्यायु, बध्यमाननरकायु इस प्रकार एक ही भंग होता है, अन्य प्रकार प्रकृतियों के बदलने से १४६ प्रकृतियों का सत्त्व नहीं पाया जाता है तथा अबद्धायुष्क के भुज्यमान एक आयु के सत्त्व बिना अन्य आयु का सत्त्व सम्भव नहीं हो सकता अत: देवायु, मनुष्यायु और तिर्यञ्चायु बिना १४५ प्रकृति का सत्त्वरूप स्थान होता है वहाँ भी भुज्यमाननरकायुरूप एक भंग जानना, क्योंकि वह बध्यमानमरकायु और तीर्थङ्करप्रकृति की सत्तावाला मनुष्य मरणकर नारकी हुआ उसके (अपर्याप्तविश्राम-विशुद्धि-इन तीन) अन्तर्मुहत पर्यन्त मिथ्यादृष्टिपना रहता है, वहाँ अबद्धायुष्क होने से भुज्यमाननरकायु के सत्त्वबिना अन्यसत्त्व नहीं है उस जीव के १४५ प्रकृति का सत्त्वस्थान होता है अन्य जीव के इस प्रकार का सत्त्व नहीं पाया जाता।
बद्धायुष्क के दूसरा सत्त्वस्थान भुज्यमान-बध्यमान इन दो आयु को छोड़कर शेष दो आयु और तीर्थङ्करप्रकृतिबिना १४५ प्रकृतियों का जानना । यहाँ पर भंग कहते हैं
भुज्यमाननरकायु-बध्यमानतिर्यञ्चायु, भुज्यमाननरकायु-बध्यमानमनुष्यायु, भुज्यमानतिर्यञ्चायु-बध्यमाननरकायु, भुज्यमानतिर्यञ्चायु-बध्यमानतिर्यञ्चायु, भुज्यमानतिर्यञ्चायुबध्यमानमनुष्यायु, भुज्यमानतिर्यञ्चायु-बध्यमानदेवायु, भुज्यमानमनुष्यायु-बध्यमाननरकायु, भुज्यमानमनुष्यायु-बध्यमानतिर्यञ्चायु, भुज्यमानमनुष्यायु - बध्यमानमनुष्यायु, भुज्यमानमनुष्यायुबध्यमानदेवायु, भुज्यमानदेवायु-बध्यमानतिर्यञ्चायु, भुज्यमानदेवायु-बध्यमानमनुष्यायु, इस प्रकार १२ भंग हुए। इनमें भुज्यमानतिर्यञ्चायु-बध्यमानतिर्यञ्चायु और भुज्यमानमनुष्यायु-बध्यमानमनुष्यायु ये दो भंग पुनरुक्त हैं, क्योंकि भुज्यमानतिर्यञ्चायु-बध्यमानतिर्यञ्चायु इस भंग में तिर्यञ्चायु की ही सत्ता है, अन्य आयु की नहीं । इसी प्रकार भुज्यमान मनुष्यायु-बध्यमानमनुष्यायु में भी जानना चाहिए।
उपर्युक्त पुनरुक्तभंगों के बिना शेष १० भंग रहे, उनमें भुज्यमान-तिर्यञ्चायु-बध्यमान-नरकायु के और भुज्यमाननरकायु-बध्यमानतिर्यञ्चायु के समानता है अत: दोनों भङ्गों में नरकायु-तिर्यञ्चायु की ही सत्ता होने से दोनों भङ्गों में एक ही भङ्ग गिनना । इसी प्रकार भुज्यमानमनुष्यायु-बध्यमाननरकायु और भुज्यमाननरकायु-बध्यमानमनुष्यायु में तथा भुज्यमानमनुष्यायु और भुज्यमाननरकायु-बध्यमानमनुष्यायु में, भुज्यमानमनुष्यायु-बध्यमानतिर्यञ्चायु और भुज्यमानतिर्यञ्चायु-बध्यमानमनुष्यायु में, भुज्यमानदेवायुबध्यमानतिर्यञ्चायु एवं भुज्यमानतिर्यञ्चायु-बध्यमानदेवायु में, भुज्यमानदेवायु-बध्यमानमनुष्यायु तथा भुज्यमानमनुष्यायु-बध्यमानदेवायु में समानता है इसलिए एक-एक ही भङ्ग गिना, इस प्रकार १४५ प्रकृति की सत्ता वाले बद्धायुष्क के ५ भङ्ग जानने ।