Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-३४३ अर्थ- नरकादि चारआयु में से भुज्यमान एक आयु तथा दूसरी आयु का बन्ध हो जाने पर १२ भङ्ग होते हैं (नरकायु-मनुष्यायु, नरकायु-तिर्यञ्चायु, तिर्यञ्चायु-नरकायु, तिर्यञ्चायु-तिर्यञ्चायु, तिर्यञ्चायु-मनुष्यायु, तिर्यञ्चायु-देवायु, मनुष्यायु-नरकायु, मनुष्यायु-तिर्यञ्चायु, मनुष्यायु-मनुष्यायु, मनुष्यायु-देवायु, देवायु-तिर्यञ्चायु और देवायु-मनुष्यायु) इन १२ भङ्गों में से पुनरुक्त (तिर्यञ्चायुनरकायु, मनुष्यायु-नरकायु, मनुष्यायु-तिर्यञ्चायु,देवायु-तिर्यञ्चायु, देवायु-मनुष्यायु) पाँचभङ्गों को तथा दो समभङ्गों (तिर्यञ्चायु-तिर्यञ्चायु, मनुष्यायु-मनुष्यायु) को कम कर देने पर शेष पाँच भङ्ग बङ्ख्यमानआयु की अपेक्षा होते हैं। जो निम्न प्रकार हैं
१.नरकायु-तिर्यञ्चायु २. नरकायु-मनुष्यायु ३. तिर्यञ्चायु-भनुष्यायु ४. तिर्यञ्चायु-देवायु ५. मनुष्यायु-देवायु।
आयु के बन्ध-अबन्ध की अपेक्षा मिथ्यात्वगुणस्थान के १८ सत्त्वस्थानों में कर्मप्रकृतियों की संख्या बताते हैं
दुतिछस्सत्तट्टणवेक्करसं सत्तरसमूणवीसमिगिवीसं ।
हीणा सव्वे सत्ता, मिच्छे बद्धाउगिदरमेगूणं ॥३६५।। अर्थ- मिथ्यात्वगुणस्थानवर्ती बद्धायुष्क के सत्त्वरूप सर्वप्रकृतियों में से २-३-६-७-८-९११-१७-१९ और २१ प्रकृतियाँ कम करने से १० सत्वस्थान हुए तथा अबद्धायुष्क के ८ सत्त्वस्थानपर्यन्त तो इनमें से एक-एक प्रकृति और कम करना एवं शेष दो स्थान पूर्वोक्त ही जानना। इस प्रकार अबद्धायुष्क के भी १० स्थान हैं और दोनों (बायुष्क-अबद्धायुष्क) के मिलकर २० स्थानों में नवमादसवाँ तथा १९-२० वाँ स्थान समान होने से दो स्थान क्रम करने से शेष १८ सत्त्वस्थान मिथ्यात्वगुणस्थान के कहे हैं।
विशेषार्थ- जिसके आगामी आयु का बन्ध हो गया है उसे बद्धायुष्क तथा जिसके आगामी आयु का बन्ध नहीं हुआ उसे अबद्धायुष्क कहते हैं।
__मिथ्यात्वगुणस्थानसम्बन्धी सत्त्वस्थानों में जो प्रकृतियाँ कम की गई हैं उनके नाम कहते हैं
तिरियाउगदेवाउगमण्णदराउगदुगं तहा तित्थं । देवतिरियाउसहिया, हारचउक्कं तु छच्चेदे ॥३६६।। आउद्गहारतित्थं, सम्मं मिस्सं च तह य देवदुर्ग। णारयछक्कं च तहा णराउउच्चं च मणुवदुगं॥३६७॥जुम्मं ॥